आसमाँ Poetry (page 13)

कहाँ पे लाई है मेरी ख़ुदी कहाँ से मुझे

रिफ़अतुल क़ासमी

मकान-ए-दिल से जो उठता था वो धुआँ भी गया

रियाज़ मजीद

अफ़्लाक गूँगे हैं

रविश नदीम

उस का ख़याल आते ही मंज़र बदल गया

रउफ़ रज़ा

दिल दुख न जाए बात कोई बे-सबब न पूछ

रऊफ़ ख़ैर

धरती से दूर हैं न क़रीब आसमाँ से हम

रऊफ़ ख़ैर

बिकती नहीं फ़क़ीर की झोली ही क्यूँ न हो

रऊफ़ ख़ैर

यक़ीं से फूटती है या गुमाँ से आती है

राशिद तराज़

मिली है कैसे गुनाहों की ये सज़ा मुझ को

राशिद तराज़

वो जो ख़ुद अपने बदन को साएबाँ करता नहीं

राशिद मुफ़्ती

हाथ से छू कर ये नीला आसमाँ भी देखते

राशिद मुफ़्ती

मुंजमिद आख़िर है क्यूँ ता-हद्द-ए-मंज़र फैल जा

राशिद अनवर राशिद

हुदूद का दाएरा

राशिद आज़र

चाँद तन्हा है कहकशाँ तन्हा

रशीदुज़्ज़फ़र

इक ख़याल-अफ़रोज़ मौज आई तो थी

राशिदा माहीन मलिक

मोहब्बत में दिल-सख़्तियाँ और भी हैं

रशीद रामपुरी

मेरे लिए तो हर्फ़-ए-दुआ हो गया वो शख़्स

रशीद क़ैसरानी

मैं उसे अपने मुक़ाबिल देख कर घबरा गया

रशीद निसार

अपने ज़िंदा जिस्म की गुफ़्तार में खोया हुआ

रशीद निसार

न छोड़ा दिल-ए-ख़स्ता-जाँ चलते चलते

रशीद लखनवी

बाग़ में जुगनू चमकते हैं जो प्यारे रात को

रशीद लखनवी

क़ैद में रक्खा गया क़तरा तो ग़लताँ हो गया

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

तिरे नज़दीक आ कर सोचता हूँ

रसा चुग़ताई

निकल कर साया-ए-अब्र-ए-रवाँ से

रसा चुग़ताई

कहाँ जाते हैं आगे शहर-ए-जाँ से

रसा चुग़ताई

ज़रा ज़रा सी बात पर वो मुझ से बद-गुमाँ रहे

रमेश कँवल

जो छू लूँ आसमाँ पाँव की धरती खींच लेता है

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

क़सीदा फ़त्ह का दुश्मन की तलवारों पे लिक्खा है

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

जो भी देना है वो ख़ुदा देगा

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

हयात-ओ-मर्ग का उक़्दा कुशा होने नहीं देता

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

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