आसमाँ Poetry (page 14)
जो निहायत मेहरबाँ है और निहाँ रक्खा गया
रख़्शंदा नवेद
जो निहायत मेहरबाँ है और निहाँ रखा गया
रख़्शंदा नवेद
उड़ चला वो इक जुदा ख़ाका लिए सर में अकेला
राजेन्द्र मनचंदा बानी
नफ़ी सारे हिसाबों की
राजेन्द्र मनचंदा बानी
सैर-ए-शब-ए-ला-मकाँ और मैं
राजेन्द्र मनचंदा बानी
क़दम ज़मीं पे न थे राह हम बदलते क्या
राजेन्द्र मनचंदा बानी
मुझ से इक इक क़दम पर बिछड़ता हुआ कौन था
राजेन्द्र मनचंदा बानी
मैं उस की बात की तरदीद करने वाला था
राजेन्द्र मनचंदा बानी
फ़ज़ा कि फिर आसमान भर थी
राजेन्द्र मनचंदा बानी
दिन को दफ़्तर में अकेला शब भरे घर में अकेला
राजेन्द्र मनचंदा बानी
अजीब तजरबा था भीड़ से गुज़रने का
राजेन्द्र मनचंदा बानी
किसे मालूम था इक दिन मोहब्बत बे-ज़बाँ होगी
राजेन्द्र कृष्ण
मयस्सर मुफ़्त में थे आसमाँ के चाँद तारे तक
राजेश रेड्डी
क्या जाने किस जहाँ में मिलेगा हमें सुकून
राजेश रेड्डी
न जिस्म साथ हमारे न जाँ हमारी तरफ़
राजेश रेड्डी
कुछ इस क़दर मैं ख़िरद के असर में आ गया हूँ
राजेश रेड्डी
इजाज़त कम थी जीने की मगर मोहलत ज़ियादा थी
राजेश रेड्डी
अब क्या बताएँ टूटे हैं कितने कहाँ से हम
राजेश रेड्डी
लाज़िम है सोज़-ए-इश्क़ का शोला अयाँ न हो
रजब अली बेग सुरूर
दिल से मत सरसरी गुज़र कि 'रईस'
रईस अमरोहवी
मुक़र्रेबीन में रम्ज़-आशना कहाँ निकले
रईस अमरोहवी
दिल से या गुल्सिताँ से आती है
रईस अमरोहवी
निकलो हिसार-ए-ज़ात से तो कुछ सुझाई दे
रहमत क़रनी
दिल के पर्दे पे चेहरे उभरते रहे मुस्कुराते रहे और हम सो गए
इरफ़ान सत्तार
अपने ग़रीब दिल की बात करते हैं राएगाँ कहाँ
इरम लखनवी
मारा किसी ने संग तो ठोकर लगी मुझे
इक़बाल साजिद
प्यासे के पास रात समुंदर पड़ा हुआ
इक़बाल साजिद
गड़े मर्दों ने अक्सर ज़िंदा लोगों की क़यादत की
इक़बाल साजिद
समुंदर के किनारे इक समुंदर आदमियों का
इक़बाल हैदर
चाँद
इंतिख़ाब अालम
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