भरोसा Poetry (page 9)

तू ने क़सम मय-कशी की खाई है 'ग़ालिब'

ग़ालिब

तिरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना

ग़ालिब

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

ग़ालिब

नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब

ग़ालिब

क्या तंग हम सितम-ज़दगाँ का जहान है

ग़ालिब

आ कि मिरी जान को क़रार नहीं है

ग़ालिब

माहौल साज़गार करो मैं नशे में हूँ

गणेश बिहारी तर्ज़

लुत्फ़-सामाँ इताब-ए-यार भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

हिज्र-ओ-विसाल-ए-यार का पर्दा उठा दिया

फ़िराक़ गोरखपुरी

तुम हरीम-ए-नाज़ में बैठे हो बेगाने बने

फ़िगार उन्नावी

लब पे झूटे तराने होते हैं

फ़िगार उन्नावी

जफ़ा-ए-यार को हम लुत्फ़-ए-यार कहते हैं

फ़िगार उन्नावी

मैं टूट कर उसे चाहूँ ये इख़्तियार भी हो

फ़ातिमा हसन

मैं टूट कर उसे चाहूँ ये इख़्तियार भी हो

फ़ातिमा हसन

न पानियों का इज़्तिरार शहर में

फ़ारूक़ मुज़्तर

तारे शुमार करते हैं रो रो के रात भर

फ़ारूक़ अंजुम

ये बाग़ ज़िंदा रहे ये बहार ज़िंदा रहे

फ़रहत एहसास

किसी पे करना नहीं ए'तिबार मेरी तरह

फ़रीद परबती

किसी पे करना नहीं ए'तिबार मेरी तरह

फ़रीद परबती

अभी मकाँ मैं अभी सू-ए-ला-मकाँ हूँ मैं

फ़रीद जावेद

जला के दामन-ए-हस्ती का तार तार उठा

फ़रीद इशरती

दर्द का समुंदर है सिर्फ़ पार होने तक

फ़रह इक़बाल

तुम्हारा चेहरा तुम्हें हू-ब-हू दिखाऊँगा

फ़राग़ रोहवी

हमारे साथ उमीद-ए-बहार तुम भी करो

फ़राग़ रोहवी

कश्ती-ए-ए'तिबार तोड़ के देख

फ़ानी बदायुनी

ज़ब्त अपना शिआर था न रहा

फ़ानी बदायुनी

ये किस क़यामत की बेकसी है ज़मीं ही अपना न यार मेरा

फ़ानी बदायुनी

तेरा निगाह-ए-शौक़ कोई राज़-दाँ न था

फ़ानी बदायुनी

ताकीद है कि दीदा-ए-दिल वा करे कोई

फ़ानी बदायुनी

मेरे लब पर कोई दुआ ही नहीं

फ़ानी बदायुनी

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