बाम Poetry (page 11)

बा'द-ए-मकीं मकाँ का गर बाम रहा तो क्या हुआ

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

मोहब्बत की गवाही अपने होने की ख़बर ले जा

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

बग़ैर उस के अब आराम भी नहीं आता

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

कभी सूरत जो मुझे आ के दिखा जाते हो

ग़ुलाम भीक नैरंग

मिरे मुद्दआ-ए-उल्फ़त का पयाम बन के आई

ग़ुबार भट्टी

न पूछ हिज्र में जो हाल अब हमारा है

ग़मगीन देहलवी

मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए

ग़ालिब

दश्त-ए-तन्हाई में जीने का सलीक़ा सीखिए

फ़ुज़ैल जाफ़री

सुब्ह तक हम रात का ज़ाद-ए-सफ़र हो जाएँगे

फ़ुज़ैल जाफ़री

आज़ादी

फ़िराक़ गोरखपुरी

तामीर-ए-नौ क़ज़ा-ओ-क़दर की नज़र में है

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

सरहदें

फ़ाज़िल जमीली

मिसाल-ए-शम्अ जला हूँ धुआँ सा बिखरा हूँ

फ़ाज़िल जमीली

ऐ कहकशाँ गुज़र के तिरी रहगुज़र से हम

फ़ाज़िल अंसारी

रूह और बदन दोनों दाग़ दाग़ हैं यारो

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

और मैं चुप रहा

फ़ारूक़ नाज़की

जूँही बाम-ओ-दर जागे

फ़ारूक़ नाज़की

मैं कि अब तेरी ही दीवार का इक साया हूँ

फ़ारिग़ बुख़ारी

कुछ अब के बहारों का भी अंदाज़ नया है

फ़ारिग़ बुख़ारी

सूने सियाह शहर पे मंज़र-पज़ीर मैं

फ़रहत एहसास

उसे ज़ियादा ज़रूरत थी घर बसाने की

फ़रहत अब्बास शाह

कभी सहर तो कभी शाम ले गया मुझ से

फ़रहत अब्बास शाह

यक़ीन

फ़रीद इशरती

चेहरा-ए-सुब्ह नज़र आया रुख़-ए-शाम के बाद

फ़ना निज़ामी कानपुरी

एक मुद्दत से सर-ए-बाम वो आया भी नहीं

फ़ैज़ुल हसन

दिन उतरते ही नई शाम पहन लेता हूँ

फ़ैज़ ख़लीलाबादी

मय-ख़ाना सलामत है तो हम सुर्ख़ी-ए-मय से

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ज़िंदाँ की एक शाम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तुम्हारे हुस्न के नाम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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