मय-ख़ाना सलामत है तो हम सुर्ख़ी-ए-मय से
तज़ईन-ए-दर-ओ-बाम-ए-हरम करते रहेंगे
Mir Taqi Mir
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हर सम्त परेशाँ तिरी आमद के क़रीने
तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
हम अहल-ए-क़फ़स तन्हा भी नहीं हर रोज़ नसीम-ए-सुब्ह-ए-वतन
सुरुद-ए-शबाना
कुत्ते
रंग है दिल का मिरे
जुदा थे हम तो मयस्सर थीं क़ुर्बतें कितनी
भाई
तुम आए हो न शब-ए-इंतिज़ार गुज़री है
ऐ ज़ुल्म के मातो लब खोलो चुप रहने वालो चुप कब तक
सब क़त्ल हो के तेरे मुक़ाबिल से आए हैं
दर-ए-उमीद के दरयूज़ा-गर