उसे ज़ियादा ज़रूरत थी घर बसाने की
वो आ के मेरे दर-ओ-बाम ले गया मुझ से
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कभी सहर तो कभी शाम ले गया मुझ से
तू ने देखा है कभी एक नज़र शाम के बा'द
उस के बारे में बहुत सोचता हूँ
मौत का वक़्त गुज़र जाएगा
मैं बे-ख़याल कभी धूप में निकल आऊँ
तुम्हारे ख़्वाब मिरे साथ साथ चलते हैं
गर दुआ भी कोई चीज़ है तो दुआ के हवाले किया