कभी सहर तो कभी शाम ले गया मुझ से
तुम्हारा दर्द कई काम ले गया मुझ से
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गर दुआ भी कोई चीज़ है तो दुआ के हवाले किया
मौत का वक़्त गुज़र जाएगा
तुम्हारे ख़्वाब मिरे साथ साथ चलते हैं
तू ने देखा है कभी एक नज़र शाम के बा'द
उसे ज़ियादा ज़रूरत थी घर बसाने की
मैं बे-ख़याल कभी धूप में निकल आऊँ
उस के बारे में बहुत सोचता हूँ