बात Poetry (page 55)

मैं चुप रहा कि वज़ाहत से बात बढ़ जाती

इफ़्तिख़ार आरिफ़

जब 'मीर' ओ 'मीरज़ा' के सुख़न राएगाँ गए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

पुराने दुश्मन

इफ़्तिख़ार आरिफ़

गुमनाम सिपाही की क़ब्र पर

इफ़्तिख़ार आरिफ़

एक रुख़

इफ़्तिख़ार आरिफ़

उमीद-ओ-बीम के मेहवर से हट के देखते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सर-ए-बाम-ए-हिज्र दिया बुझा तो ख़बर हुई

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सजल कि शोर ज़मीनों में आशियाना करे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

रविश में गर्दिश-ए-सय्यारगाँ से अच्छी है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कोई जुनूँ कोई सौदा न सर में रक्खा जाए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ग़ैरों से दाद-ए-जौर-ओ-जफ़ा ली गई तो क्या

इफ़्तिख़ार आरिफ़

फ़ज़ा में वहशत-ए-संग-ओ-सिनाँ के होते हुए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया

इफ़्तिख़ार आरिफ़

न दे जो दिल ही दुहाई तो कोई बात नहीं

इफ़तिख़ार अहमद फख्र

काम की बात पूछते क्या हो

इदरीस बाबर

मतला ग़ज़ल का ग़ैर ज़रूरी क्या क्यूँ कब का हिस्सा है

इदरीस बाबर

मैं उसे सोचता रहा या'नी

इदरीस बाबर

किसी के हाथ कहाँ ये ख़ज़ाना आता है

इदरीस बाबर

ये तकल्लुफ़ ये मुदारात समझ में आए

इबरत मछलीशहरी

सुकूँ-परवर है जज़्बाती नहीं है

इबरत बहराईची

ये और बात है कि बरहना थी ज़िंदगी

इब्राहीम अश्क

थी हौसले की बात ज़माने में ज़िंदगी

इब्राहीम अश्क

मिशअल-ब-कफ़ कभी तो कभी दिल-ब-दस्त था

इब्राहीम अश्क

मैं कब रहीन-ए-रेग-ए-बयाबान-ए-यास था

इब्राहीम अश्क

करें सलाम उसे तो कोई जवाब न दे

इब्राहीम अश्क

अजीब बात है कीचड़ में लहलहाए कँवल

इब्न-ए-सफ़ी

यूँही वाबस्तगी नहीं होती

इब्न-ए-सफ़ी

कुछ तो तअल्लुक़ कुछ तो लगाओ

इब्न-ए-सफ़ी

छलकती आए कि अपनी तलब से भी कम आए

इब्न-ए-सफ़ी

बड़े ग़ज़ब का है यारो बड़े अज़ाब का ज़ख़्म

इब्न-ए-सफ़ी

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