बदन Poetry (page 19)

ना-मुकम्मल तआरुफ़

रियाज़ लतीफ़

गाए

रियाज़ लतीफ़

ताख़ीर आ पड़ी जो बदन के ज़ुहूर में

रियाज़ लतीफ़

ले जाऊँ कहीं उन को बदन पार ही रक्खूँ

रियाज़ लतीफ़

खींच कर ले जाएगा अंजान महवर की तरफ़

रियाज़ लतीफ़

हिसार के सभी निज़ाम गर्द गर्द हो गए

रियाज़ लतीफ़

हर एक ख़लिया को आईना घर बनाते हुए

रियाज़ लतीफ़

गुज़र चुके हैं बदन से आगे नजात का ख़्वाब हम हुए हैं

रियाज़ लतीफ़

दुनिया से परे जिस्म के इस बाब में आए

रियाज़ लतीफ़

न तारे अफ़्शाँ न कहकशाँ है नमूना हँसती हुई जबीं का

रियाज़ ख़ैराबादी

मुँह ज़ेर-ए-ताक खोला वाइज़ बहुत ही चूका

रियाज़ ख़ैराबादी

आफ़त शब-ए-तन्हाई की टल जाए तो अच्छा

रिन्द लखनवी

मसर्रतों का खिला है हर एक सम्त चमन

रिफ़अत सुलतान

बहारों को चमन याद आ गया है

रिफ़अत सुलतान

जब याद आया तेरा महकता बदन मुझे

रिफ़अत अल हुसैनी

कौन से जज़्बात ले कर तेरे पास आया करूँ

रियाज़ मजीद

हो गया है एक इक पल काटना भारी मुझे

रियाज़ मजीद

धूप को कुछ और जलना चाहिए

रेनू नय्यर

धूप को कुछ और जलना चाहिए

रेनू नय्यर

तख़्लीक़ किसे कहते हैं है अज़्मत-ए-फ़न क्या

रहबर जौनपूरी

शब-ओ-रोज़ रक़्स-ए-विसाल था सो नहीं रहा

रेहाना रूही

जुनून-ए-इश्क़ में सद-चाक होना पड़ता है

रेहाना रूही

वो जंग मैं ने महाज़-ए-अना पे हारी है

राज़ी अख्तर शौक़

कैसे इस शहर में रहना होगा

राज़ी अख्तर शौक़

अब्र के बिन देखे हरगिज़ ख़ुश दिल-ए-मस्ताँ न हो

रज़ा अज़ीमाबादी

देख उफ़ुक़ के पीले-पन में दूर वो मंज़र डूब गया

रौनक़ रज़ा

कुछ अजब सा हूँ सितमगर मैं भी

रउफ़ रज़ा

पत्ते तमाम हल्क़ा-ए-सरसर में रह गए

रऊफ़ ख़ैर

साया सा इक ख़याल की पहनाइयों में था

रासिख़ इरफ़ानी

खंडर में दफ़्न हुई हैं इमारतें क्या क्या

रासिख़ इरफ़ानी

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