बज़्म Poetry (page 27)

शदीद गरमी के मौसम में मुशाइरा

दिलावर फ़िगार

न मिरा मकाँ ही बदल गया न तिरा पता कोई और है

दिलावर फ़िगार

मायूस-ए-अज़ल हूँ ये माना नाकाम-ए-तमन्ना रहना है

दिल शाहजहाँपुरी

तेरी अँखियाँ के तसव्वुर में सदा मस्ताना हूँ

दाऊद औरंगाबादी

ख़िर्क़ा-पोशी में ख़ुद-नुमाई है

दाऊद औरंगाबादी

अगर वो गुल-बदन मुझ पास हो जावे तो क्या होवे

दाऊद औरंगाबादी

फ़िदा अल्लाह की ख़िल्क़त पे जिस का जिस्म ओ जाँ होगा

दत्तात्रिया कैफ़ी

राज़-ए-निहाँ थी ज़िंदगी राज़-ए-निहाँ है आज भी

दर्शन सिंह

निगाह-ए-मस्त-ए-साक़ी का सलाम आया तो क्या होगा

दर्शन सिंह

जब आदमी मुद्दआ-ए-हक़ है तो क्या कहें मुद्दआ' कहाँ है

दर्शन सिंह

शम्अ के मानिंद हम इस बज़्म में

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

साक़ी मिरे भी दिल की तरफ़ टुक निगाह कर

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

तोहमत-ए-चंद अपने ज़िम्मे धर चले

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

ज़र्रे ज़र्रे में महक प्यार की डाली जाए

दानिश अलीगढ़ी

शब-ए-विसाल है गुल कर दो इन चराग़ों को

दाग़ देहलवी

हसरतें ले गए इस बज़्म से चलने वाले

दाग़ देहलवी

दिल ले के उन की बज़्म में जाया न जाएगा

दाग़ देहलवी

वो ज़माना नज़र नहीं आता

दाग़ देहलवी

तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था

दाग़ देहलवी

पुकारती है ख़मोशी मिरी फ़ुग़ाँ की तरह

दाग़ देहलवी

फिर शब-ए-ग़म ने मुझे शक्ल दिखाई क्यूँकर

दाग़ देहलवी

मुझ सा न दे ज़माने को परवरदिगार दिल

दाग़ देहलवी

क्या तर्ज़-ए-कलाम हो गई है

दाग़ देहलवी

कुछ लाग कुछ लगाव मोहब्बत में चाहिए

दाग़ देहलवी

खुलता नहीं है राज़ हमारे बयान से

दाग़ देहलवी

कौन सा ताइर-ए-गुम-गश्ता उसे याद आया

दाग़ देहलवी

हाथ निकले अपने दोनों काम के

दाग़ देहलवी

बुतान-ए-माहवश उजड़ी हुई मंज़िल में रहते हैं

दाग़ देहलवी

भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं

दाग़ देहलवी

अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का

दाग़ देहलवी

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