मूर्ति Poetry (page 23)
जो बुत है यहाँ अपनी जा एक ही है
आरज़ू लखनवी
हुस्न से शरह हुई इश्क़ के अफ़्साने की
आरज़ू लखनवी
दूर थे होश-ओ-हवास अपने से भी बेगाना था
आरज़ू लखनवी
दिल में याद-ए-बुत-ए-बे-पीर लिए बैठा हूँ
आरज़ू लखनवी
देखें महशर में उन से क्या ठहरे
आरज़ू लखनवी
उम्र तो अपनी हुई सब बुत-परस्ती में बसर
अरशद अली ख़ान क़लक़
हज़रत-ए-इश्क़ ने दोनों को किया ख़ाना-ख़राब
अरशद अली ख़ान क़लक़
साफ़ बातों से हो गया मा'लूम
अरशद अली ख़ान क़लक़
हुज़ूर-ए-ग़ैर तुम उश्शाक़ की तहक़ीर करते हो
अरशद अली ख़ान क़लक़
दफ़्तर जो गुलों के वो सनम खोल रहा है
अरशद अली ख़ान क़लक़
बाक़ी न हुज्जत इक दम-ए-इसबात रह गई
अरशद अली ख़ान क़लक़
आरिज़ में तुम्हारे क्या सफ़ा है
अरशद अली ख़ान क़लक़
तौबा तौबा ये बला-ख़ेज़ जवानी तौबा
अर्श मलसियानी
मज़ा देता है याद आ कर तिरा बिस्मिल बना देना
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
तेरी सोहबत में बैठा हूँ
अनवर शऊर
शक नहीं है हमें उस बुत के ख़ुदा होने में
अनवर शऊर
वो पर्दे से निकल कर सामने जब बे-हिजाब आया
अनवर सहारनपुरी
उस की अना के बुत को बड़ा कर के देखते
अनवर सदीद
देखा जो मर्ग तो मरना ज़ियाँ न था
अनवर देहलवी
अश्क बेताब व निगह बे-बाक व चश्म-ए-तर ख़राब
अनवर देहलवी
चाँद तारे जिसे हर शब देखें
अनवर अंजुम
दीदा-ए-तर ने अजब जल्वागरी देखी है
अनवर मोअज़्ज़म
परछाइयों के शहर ज़मीं पर बसा दिए
अंजुम अंसारी
उस बुत को ज़रा छू के तो देखें कि वो क्या है
अनजुम अब्बासी
ख़ुद-परस्ती से इश्क़ हो गया है
अम्मार इक़बाल
कल मिरा था आज वो बुत ग़ैर का होने लगा
अमीरुल्लाह तस्लीम
दर्द बढ़ता गया जितने दरमाँ किए प्यास बढ़ती गई जितने आँसू पिए
आमिर उस्मानी
शौक़ कहता है पहुँच जाऊँ मैं अब काबे में जल्द
अमीर मीनाई
शैख़ कहता है बरहमन को बरहमन उस को सख़्त
अमीर मीनाई
आए बुत-ख़ाने से काबे को तो क्या भर पाया
अमीर मीनाई
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