हज़रत-ए-इश्क़ ने दोनों को किया ख़ाना-ख़राब
बरहमन बुत-कदा और शैख़ हरम भूल गए
Anwar Masood
Rahat Indori
Habib Jalib
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Gulzar
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
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लाग़र ऐसा वहशत-ए-इश्क़-ए-लब-ए-शीरीं में हूँ
शरफ़ इंसान को कब ज़िल्ल-ए-हुमा देता है
अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का
दाँतों से जबकि उस गुल-ए-तर के दबाए होंठ
था क़स्द-ए-क़त्ल-ए-ग़ैर मगर मैं तलब हुआ
ख़रीदारी-ए-जिंस-ए-हुस्न पर रग़बत दिलाता है
चश्मक-ज़नी में करती नहीं यार का लिहाज़
नया मज़मून लाना काटना कोह-ओ-जबल का है
बे-अब्र रिंद पीते नहीं वाइ'ज़ो शराब
यूँ राही-ए-अ'दम हुई बा-वस्फ़-ए-उज़्र-ए-लंग
ख़ुश-क़दों से कभी आलम न रहेगा ख़ाली
गुलों पर साफ़ धोका हो गया रंगीं कटोरी का