नया मज़मून लाना काटना कोह-ओ-जबल का है
नहीं हम शेर कहते पेशा-ए-फ़र्हाद कहते हैं
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Gulzar
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Anwar Masood
Wasi Shah
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
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ख़त में लिक्खी है हक़ीक़त दश्त-गर्दी की अगर
उम्र तो अपनी हुई सब बुत-परस्ती में बसर
हिम्मत का ज़ाहिदों की सरासर क़ुसूर था
ख़फ़ा हो गालियाँ दो चाहे आने दो न आने दो
लुट रही है दौलत-ए-दीदार क़ैसर-बाग़ में
वो रिंद हूँ कि मुझे हथकड़ी से बैअत है
परतव पड़ा जो आरिज़-ए-गुलगून-ए-यार का
जमे क्या पाँव मेरे ख़ाना-ए-दिल में क़नाअ'त का
ख़रीदारी-ए-जिंस-ए-हुस्न पर रग़बत दिलाता है
यार के नर्गिस-ए-बीमार का बीमार रहा
जुनूँ बरसाए पत्थर आसमाँ ने मज़रा-ए-जाँ पर
ख़ुदा-हाफ़िज़ है अब ऐ ज़ाहिदो इस्लाम-ए-आशिक़ का