चाँद Poetry (page 4)

फ़स्ल-ए-गुल को ज़िद है ज़ख़्म दिल का हरा कैसे हो

ज़फ़र गौरी

चल पड़े हम दश्त-ए-बे-साया भी जंगल हो गया

ज़फ़र गौरी

ये जो तेरी आँखों में मा'नी-ए-वफ़ा सा है

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

तिरे क़रीब रहूँ या कि मैं सफ़र में रहूँ

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

कभी किसी को जो देखा किसी की बाँहों में

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

इन की नज़रों में न बन जाए तमाशा चेहरा

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

आ मिरे चाँद रात सूनी है

यूसुफ़ ज़फ़र

ख़बर

यूसुफ़ ज़फ़र

मैं लिपटता रहा हूँ ख़ारों से

यूसुफ़ ज़फ़र

ऐ बे-ख़बरी जी का ये क्या हाल है कल से

यूसुफ़ ज़फ़र

सूरज के साथ साथ उभारे गए हैं हम

यज़दानी जालंधरी

हमें ख़बर थी बचाने का उस में यारा नहीं

यासमीन हमीद

आते रहते हैं फ़लक से भी इशारे कुछ न कुछ

यासमीन हबीब

आते रहते हैं फ़लक से भी इशारे कुछ न कुछ

यासमीन हबीब

ज़ख़्म मेरे दिल पे इक ऐसा लगा

यासीन अफ़ज़ाल

काम दीवानों को शहरों से न बाज़ारों से

यगाना चंगेज़ी

अब दिन की बातें करते हैं

वज़ीर आग़ा

उस की आवाज़ में थे सारे ख़द-ओ-ख़ाल उस के

वज़ीर आग़ा

मुद्दतों उस की ख़्वाहिश से चलते रहे हाथ आता नहीं

वसी शाह

कितनी ज़ुल्फ़ें उड़ीं कितने आँचल उड़े चाँद को क्या ख़बर

वसी शाह

दुख दर्द में हमेशा निकाले तुम्हारे ख़त

वसी शाह

आँखों में चुभ गईं तिरी यादों की किर्चियाँ

वसी शाह

आसमानों पर भी हैं चर्चे हुस्न-ए-आलमगीर के

वसीम ख़ैराबादी

तुम आ गए हो तो कुछ चाँदनी सी बातें हों

वसीम बरेलवी

दीवाने की जन्नत

वसीम बरेलवी

ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है

वसीम बरेलवी

मेरे ग़म को जो अपना बताते रहे

वसीम बरेलवी

अपने साए को इतना समझाने दे

वसीम बरेलवी

पेश वो हर पल है साहब

वक़ार सहर

रात भी मुरझा चली चाँद भी कुम्हला गया

वामिक़ जौनपुरी

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