चरख़ Poetry (page 3)

बा'द-ए-मजनूँ क्यूँ न हूँ मैं कार-फ़रमा-ए-जुनूँ

शाह नसीर

जों सब्ज़ा रहे उगते ही पैरों के तले हम

शाद लखनवी

देख कर रू-ए-सनम को न बहल जाऊँगा

शाद लखनवी

बोलना बादा-कशों से न ज़रा ऐ वाइज़

शाद लखनवी

आशिक़ की जान जाती है इस बाँकपन को छोड़

शबाब

दर-ए-मय-कदा है खुला हुआ सर-ए-चर्ख़ आज घटा भी है

सरदार सोज़

नाला शब-ए-फ़िराक़ जो कोई निकल गया

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

मैं वो आतिश-ए-नफ़स हूँ आग अभी

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

देखा किसी का हम ने न ऐसा सुना दिमाग़

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

मिलता जो कोई टुकड़ा इस चर्ख़-ए-ज़बरजद में

साक़िब लखनवी

उन की चुटकी में दिल न मल जाता

सख़ी लख़नवी

बहार आ कर जो गुलशन में वो गाएँ

सख़ी लख़नवी

दौर-ए-चर्ख़-ए-कबूद जारी है

साहिर होशियारपुरी

कोई आबाद मंज़िल हम जो वीराँ देख लेते हैं

सफ़ी लखनवी

तराना-ए-क़ौमी

सफ़ीर काकोरवी

दुरुस्त है कि मिरा हाल अब ज़ुबूँ भी नहीं

सफ़दर मीर

अपनी खोई हुई तौक़ीर नुमायाँ कर दें

सईदा जहाँ मख़्फ़ी

हमें कहती है दुनिया ज़ख़्म-ए-दिल ज़ख़्म-ए-जिगर वाले

साइल देहलवी

कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर

रियाज़ ख़ैराबादी

नक़ाब-ए-रुख़ उठा कर हुस्न जब जल्वा-फ़िगन होगा

रिफ़अत सेठी

रैलियाँ ही रैलियाँ

रज़ा नक़वी वाही

आईना ख़ुद-नुमाई उन को सिखा रहा है

रसा रामपुरी

देता है मुझ को चर्ख़-ए-कुहन बार बार दाग़

रंजूर अज़ीमाबादी

देता है मुझ को चर्ख़-ए-कुहन बार बार दाग़

रंजूर अज़ीमाबादी

क़फ़स पे बर्क़ गिरे और चमन को आग लगे

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

ख़ुद्दारी-ए-हयात को रुस्वा नहीं किया

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

लाज़िम है सोज़-ए-इश्क़ का शोला अयाँ न हो

रजब अली बेग सुरूर

करूँ शिकवा न क्यूँ चर्ख़-ए-कुहन से

रजब अली बेग सुरूर

ज़मीं से उट्ठी है या चर्ख़ पर से उतरी है

इंशा अल्लाह ख़ान

ज़मीं से उट्ठी है या चर्ख़ पर से उतरी है

इंशा अल्लाह ख़ान

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