चरख़ Poetry (page 2)

ब-ख़ुदा इश्क़ का आज़ार बुरा होता है

सुरूर जहानाबादी

वफ़ा का इम्तिहाँ है जान-आे-तन की आज़माइश है

सुलैमान आसिफ़

तुम आसमाँ की तरफ़ न देखो

सूफ़ी तबस्सुम

हर ज़र्रा उभर के कह रहा है

सूफ़ी तबस्सुम

चराग़-ए-मह सीं रौशन-तर है हुस्न-ए-बे-मिसाल उस का

सिराज औरंगाबादी

भरा कमाल-ए-वफ़ा सें ख़याल का शीशा

सिराज औरंगाबादी

यार को रग़बत-ए-अग़्यार न होने पाए

शिबली नोमानी

क़ुफ़्ल-ए-सद-ख़ाना-ए-दिल आया जो तू टूट गए

ज़ौक़

न करता ज़ब्त मैं नाला तो फिर ऐसा धुआँ होता

ज़ौक़

कहाँ तलक कहूँ साक़ी कि ला शराब तो दे

ज़ौक़

गईं यारों से वो अगली मुलाक़ातों की सब रस्में

ज़ौक़

दख़्ल हर दिल में तिरा मिस्ल-ए-सुवैदा हो गया

शैख़ अली बख़्श बीमार

दिल का गिला फ़लक की शिकायत यहाँ नहीं

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

मिरा ज़मीर बहुत है मुझे सज़ा के लिए

शाज़ तमकनत

दर से मायूस तिरे तालिब-ए-इकराम चले

शातिर हकीमी

ये क्या अंदाज़ हैं दस्त-ए-जुनून-ए-फ़ित्ना-सामाँ के

शम्स इटावी

बस नहीं चलता जो उस दम उन के ऊपर गर पड़े

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

अजब अहवाल देखा इस ज़माने के अमीरों का

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

हम क़ुव्वत-ए-जज़्ब-ए-दिल दिखाएँ

शहाबुद्दीन साक़िब

ये निगल जाएगी इक दिन तिरी चौड़ाई चर्ख़

शाह नसीर

ये चर्ख़-ए-नीलगूँ इक ख़ाना-ए-पुर-दूद है यारो

शाह नसीर

मेरे नाले के न क्यूँ हो चर्ख़-ए-अख़्ज़र ज़ेर-ए-पा

शाह नसीर

गर्दिश-ए-चर्ख़ नहीं कम भी हंडोले से कि महर

शाह नसीर

ज़ुल्फ़ छुटती तिरे रुख़ पर तो दिल अपना फिरता

शाह नसीर

न दिखाइयो हिज्र का दर्द-ओ-अलम तुझे देता हूँ चर्ख़-ए-ख़ुदा की क़सम

शाह नसीर

मिल बैठने ये दे है फ़लक एक दम कहाँ

शाह नसीर

जूँ ज़र्रा नहीं एक जगह ख़ाक-नशीं हम

शाह नसीर

जिगर का जूँ शम्अ काश या-रब हो दाग़ रौशन मुराद हासिल

शाह नसीर

दिल इश्क़-ए-ख़ुश-क़दाँ में जो ख़्वाहान-ए-नाला था

शाह नसीर

दिखा दो गर माँग अपनी शब को तो हश्र बरपा हो कहकशाँ पर

शाह नसीर

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