छोड़ दो Poetry (page 26)

एक मरकज़ पे सिमट आई है सारी दुनिया

चरण सिंह बशर

जले चराग़ बुझाने की ज़िद नहीं करते

चाँदनी पांडे

देते हैं मेरे जाम में देखें शराब कब

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

दिल किए तस्ख़ीर बख़्शा फ़ैज़-ए-रूहानी मुझे

चकबस्त ब्रिज नारायण

उन्हें ढूँडो

बुशरा एजाज़

संग को छोड़ के तू ने कभी सोचा ही नहीं

बबल्स होरा सबा

बे-रुख़ी ने उस की कैसा ये इशारा कर दिया

बबल्स होरा सबा

बैठा नहीं हूँ साया-ए-दीवार देख कर

बिस्मिल सईदी

दीवार-ए-काबा 19 नवम्बर 1989

बिलाल अहमद

ये सूरज कब निकलता है उन्हीं से पूछना होगा

भारत भूषण पन्त

हमारे हाल पे अब छोड़ दे हमें दुनिया

भारत भूषण पन्त

सच्चाइयों को बर-सर-ए-पैकार छोड़ कर

भारत भूषण पन्त

पराया लग रहा था जो वही अपना निकल आया

भारत भूषण पन्त

मैं ने सोचा था मुझे मिस्मार कर सकता नहीं

भारत भूषण पन्त

कब तलक चलना है यूँ ही हम-सफ़र से बात कर

भारत भूषण पन्त

हर एक रात में अपना हिसाब कर के मुझे

भारत भूषण पन्त

अंधेरा मिटता नहीं है मिटाना पड़ता है

भारत भूषण पन्त

हज़रत-ए-दिल ये इश्क़ है दर्द से कसमसाए क्यूँ

बेख़ुद देहलवी

दिमाग़ अर्श पे है ख़ुद ज़मीं पे चलते हैं

बेकल उत्साही

इक बेवफ़ा को दर्द का दरमाँ बना लिया

बहज़ाद लखनवी

मिरी दास्तान-ए-अलम तो सुन कोई ज़लज़ला नहीं आएगा

बेदिल हैदरी

सब ने ग़ुर्बत में मुझ को छोड़ दिया

बेदम शाह वारसी

मुझे जल्वों की उस के तमीज़ हो क्या मेरे होश-ओ-हवास बचा ही नहीं

बेदम शाह वारसी

दिल लिया जान ली नहीं जाती

बेदम शाह वारसी

ख़ंजर तलाश करता है

बेबाक भोजपुरी

हक़-केश की फ़रियाद

बेबाक भोजपुरी

सुब्ह क़यामत आएगी कोई न कह सका कि यूँ

बयान मेरठी

तुझ को देख रहा हूँ मैं

बासिर सुल्तान काज़मी

कितना काम करेंगे

बासिर सुल्तान काज़मी

हज़ार कहता रहा मैं कि यार एक मिनट

बासिर सुल्तान काज़मी

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