दाग Poetry (page 4)

है आरज़ू ये जी में उस की गली में जावें

ताबाँ अब्दुल हई

मुझ से क्या पूछते हो दाग़ हैं दिल में कितने

तअशशुक़ लखनवी

चिराग़-दाग़ मैं दिन से जलाए बैठा हूँ

तअशशुक़ लखनवी

याद-ए-अय्याम कि हम-रुतबा-ए-रिज़वाँ हम थे

तअशशुक़ लखनवी

दो दमों से है फ़क़त गोर-ए-ग़रीबाँ आबाद

तअशशुक़ लखनवी

हम अगर दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते

सय्यद ज़मीर जाफ़री

अगर हम दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते

सय्यद ज़मीर जाफ़री

वही गुल है गुलिस्ताँ में वही है शम्अ' महफ़िल में

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

मैं ने कहा कि दा'वा-ए-उलफ़त मगर ग़लत

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

कलाम-ए-सख़्त कह कह कर वो क्या हम पर बरसते हैं

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

इम्तिहान

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

ज़ेब उस को ये आशोब-ए-गदाई नहीं देता

सय्यद अमीन अशरफ़

वो बुत मुब्तला-तलब मेहर-तलब वफ़ा-तलब

सय्यद अाग़ा अली महर

सती

सुरूर जहानाबादी

गंगा जी

सुरूर जहानाबादी

बुलबुल ओ परवाना

सुरूर जहानाबादी

वो बे-रुख़ी कि तग़ाफ़ुल की इंतिहा कहिए

सुरूर बाराबंकवी

तुम आसमाँ की तरफ़ न देखो

सूफ़ी तबस्सुम

मिटी मिटी हुई यादों के दाग़ क्या जलते?

सूफ़ी तबस्सुम

क्या हुआ जो सितारे चमकते नहीं दाग़ दिल के फ़रोज़ाँ करो दोस्तो

सूफ़ी तबस्सुम

और किस शय से दाग़-ए-दिल धोएँ

सुबहान असद

मुझे अब हवा-ए-चमन नहीं कि क़फ़स में गूना क़रार है

सिराज लखनवी

जाँ-सिपारी दाग़ कत्था चूना है चश्म-ए-इन्तिज़ार

सिराज औरंगाबादी

या-रब कहाँ गया है वो सर्व-ए-शोख़-रा'ना

सिराज औरंगाबादी

यार जब पेश-ए-नज़र होता है

सिराज औरंगाबादी

वहशत को मिरी देख कि मजनूँ ने कहा बस

सिराज औरंगाबादी

उश्शाक़ का दिल दाग़ का अंदाज़ा हुआ महज़

सिराज औरंगाबादी

सीना-साफ़ी की है जिसे ऐनक

सिराज औरंगाबादी

पुर-ख़ूँ है जिगर लाला-ए-सैराब की सौगंद

सिराज औरंगाबादी

पी कर शराब-ए-शौक़ कूँ बेहोश हो बेहोश हो

सिराज औरंगाबादी

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