मुझ से क्या पूछते हो दाग़ हैं दिल में कितने
तुम को अय्याम-ए-जुदाई का शुमार आता है
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जोश पर थीं सिफ़त-ए-अब्र-ए-बहारी आँखें
जिस तरफ़ बैठते थे वस्ल में आप
आमद आमद है ख़िज़ाँ की जाने वाली है बहार
दिल जल के रह गए ज़क़न-ए-रश्क-ए-माह पर
कब अपनी ख़ुशी से वो आए हुए हैं
मुँह जो फ़ुर्क़त में ज़र्द रहता है
सू-ए-दयार ख़ंदा-ज़न वो यार-ए-जानी फिर गया
बाग़ में फूलों को रौंद आई सवारी आप की
तमाम उम्र कमी की कभी न पानी ने
बार-ए-ख़ातिर ही अगर है तो इनायत कीजे
पड़ गई क्या निगह-ए-मस्त तिरे साक़ी की
अपनी फ़रहत के दिन ऐ यार चले आते हैं