दर Poetry (page 45)

दीवार ओ दर झुलसते रहे तेज़ धूप में

इफ़्तिख़ार नसीम

सूरज नए बरस का मुझे जैसे डस गया

इफ़्तिख़ार नसीम

शाम से तन्हा खड़ा हूँ यास का पैकर हूँ मैं

इफ़्तिख़ार नसीम

नाम भी जिस का ज़बाँ पर था दुआओं की तरह

इफ़्तिख़ार नसीम

न जाने कब वो पलट आएँ दर खुला रखना

इफ़्तिख़ार नसीम

जिला-वतन हूँ मिरा घर पुकारता है मुझे

इफ़्तिख़ार नसीम

दर-ओ-दीवार ख़ुद-कुशी कर लें

इफ़्तिख़ार फलक काज़मी

दश्त-ए-बे-सम्त में रुकना भी सफ़र ऐसा था

इफ़्तिख़ार बुख़ारी

दश्त-ए-बे-सम्त में रुकना भी सफ़र ऐसा था

इफ़्तिख़ार बुख़ारी

बनती है सँवरती है बिखर जाती है दुनिया

इफ़्तिख़ार बुख़ारी

मैं अपने ख़्वाब से कट कर जियूँ तो मेरा ख़ुदा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

दर-ओ-दीवार इतने अजनबी क्यूँ लग रहे हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

शहर-आशोब

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सौग़ात

इफ़्तिख़ार आरिफ़

इंतिबाह

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ये मो'जिज़ा भी किसी की दुआ का लगता है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

वफ़ा की ख़ैर मनाता हूँ बेवफ़ाई में भी

इफ़्तिख़ार आरिफ़

समुंदर इस क़दर शोरीदा-सर क्यूँ लग रहा है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सब चेहरों पर एक ही रंग और सब आँखों में एक ही ख़्वाब

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मिरे ख़ुदा मुझे इतना तो मो'तबर कर दे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़्वाब देखने वाली आँखें पत्थर होंगी तब सोचेंगे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़ल्क़ ने इक मंज़र नहीं देखा बहुत दिनों से

इफ़्तिख़ार आरिफ़

इन्हीं में जीते इन्हीं बस्तियों में मर रहते

इफ़्तिख़ार आरिफ़

न दे जो दिल ही दुहाई तो कोई बात नहीं

इफ़तिख़ार अहमद फख्र

बे-सम्त रास्तों पे सदा ले गई मुझे

इफ़्फ़त ज़र्रीं

अजीब कर्ब-ए-मुसलसल दिल-ओ-नज़र में रहा

इफ़्फ़त ज़र्रीं

ख़ूँ में तर सब्र की चादर कहाँ ले जाओगे

इफ़्फ़त अब्बास

आज तो जैसे दिन के साथ दिल भी ग़ुरूब हो गया

इदरीस बाबर

रब्त असीरों को अभी उस गुल-ए-तर से कम है

इदरीस बाबर

ज़िंदगी वादी ओ सहरा का सफ़र है क्यूँ है

इब्राहीम अश्क

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