दर Poetry (page 46)

उस की इक दुनिया हूँ मैं और मेरी इक दुनिया है वो

इब्राहीम अश्क

दिल वही अश्क-बार रहता है

इब्न-ए-मुफ़्ती

हम किसी दर पे न ठिटके न कहीं दस्तक दी

इब्न-ए-इंशा

ये सराए है

इब्न-ए-इंशा

पिछले-पहर के सन्नाटे में

इब्न-ए-इंशा

कुछ दे इसे रुख़्सत कर

इब्न-ए-इंशा

कातिक का चाँद

इब्न-ए-इंशा

शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती

इब्न-ए-इंशा

रात के ख़्वाब सुनाएँ किस को रात के ख़्वाब सुहाने थे

इब्न-ए-इंशा

किस को पार उतारा तुम ने किस को पार उतारोगे

इब्न-ए-इंशा

जाने तू क्या ढूँढ रहा है बस्ती में वीराने में

इब्न-ए-इंशा

अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले

इब्न-ए-इंशा

क्या ख़बर थी इंक़लाब आसमाँ हो जाएगा

हुसैन मीर काश्मीरी

सुबूत-ए-जुर्म न मिलने का फिर बहाना किया

हुसैन ताज रिज़वी

फिर तिरा शहर तिरी राहगुज़र हो कि न हो

हुसैन ताज रिज़वी

ढली जो शाम नज़र से उतर गया सूरज

हुसैन ताज रिज़वी

राहत ओ रंज से जुदा हो कर

हुसैन आबिद

वो दिल जो था किसी के ग़म का महरम हो गया रुस्वा

हुरमतुल इकराम

वक़्त की आँख से कुछ ख़्वाब नए माँगता है

हुमैरा राहत

हवा के साथ ये कैसा मोआमला हुआ है

हुमैरा राहत

मिलता नहीं मिज़ाज ख़ुद अपनी अदा में है

होश तिर्मिज़ी

उन के सब झूट मो'तबर ठहरे

हिना हैदर

हरीफ़-ए-विसाल

हिमायत अली शाएर

रात सुनसान दश्त ओ दर ख़ामोश

हिमायत अली शाएर

इस दश्त-ए-सुख़न में कोई क्या फूल खिलाए

हिमायत अली शाएर

आँख की क़िस्मत है अब बहता समुंदर देखना

हिमायत अली शाएर

तड़प के हाल सुनाया तो आँख भर आई

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

रंग-आमेज़ी से पैदा कुछ असर ऐसा हुआ

हीरा लाल फ़लक देहलवी

कू-ए-जानाँ में नहीं कोई गुज़र की सूरत

हीरा लाल फ़लक देहलवी

इस का नहीं है ग़म कोई, जाँ से अगर गुज़र गए

हज़ीं लुधियानवी

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