दर Poetry (page 59)

मिलना है अगर ख़ुद से तो फिर देर न करना

फ़रहत नदीम हुमायूँ

ऐ कातिब-ए-तक़दीर ये तक़दीर में लिख दे

फ़रहत नदीम हुमायूँ

बिछड़े घर का साया

फ़रहत एहसास

बैज़ा-ए-नूर

फ़रहत एहसास

वो मेरी जाँ के सदफ़ में गुहर सा रहता है

फ़रहत एहसास

तन्हाई के आब-ए-रवाँ के साहिल पर बैठा हूँ मैं

फ़रहत एहसास

सूने सियाह शहर पे मंज़र-पज़ीर मैं

फ़रहत एहसास

साहिब-ए-इश्क़ अब इतनी सी तो राहत मुझे दे

फ़रहत एहसास

सब मिरा आब-ए-रवाँ किस के इशारों पे बहा जाता है

फ़रहत एहसास

सब लज़्ज़तें विसाल की बेकार करते हो

फ़रहत एहसास

नंग धड़ंग मलंग तरंग में आएगा जो वही काम करेंगे

फ़रहत एहसास

मोहब्बत का सिला-कार-ए-मोहब्बत से नहीं मिलता

फ़रहत एहसास

मौत ही एक दवा है और वो जारी है

फ़रहत एहसास

कुछ बताता नहीं क्या सानेहा कर बैठा है

फ़रहत एहसास

कभी हँसते नहीं कभी रोते नहीं कभी कोई गुनाह नहीं करते

फ़रहत एहसास

हुई इक ख़्वाब से शादी मिरी तन्हाई की

फ़रहत एहसास

घर बनाने में तमाम अहल-ए-सफ़र लग गए हैं

फ़रहत एहसास

इक हवा आई है दीवार में दर करने को

फ़रहत एहसास

एक ग़ज़ल कहते हैं इक कैफ़िय्यत तारी कर लेते हैं

फ़रहत एहसास

दोनों का ला-शुऊ'र है इतना मिला हुआ

फ़रहत एहसास

चाकरी में रह के इस दुनिया की मोहमल हो गए थे

फ़रहत एहसास

बदन और रूह में झगड़ा पड़ा है

फ़रहत एहसास

असीर-ए-ख़ाक भी हूँ ख़ाक से रिहा भी हूँ मैं

फ़रहत एहसास

उसे ज़ियादा ज़रूरत थी घर बसाने की

फ़रहत अब्बास शाह

तू ने देखा है कभी एक नज़र शाम के बा'द

फ़रहत अब्बास शाह

मौत का वक़्त गुज़र जाएगा

फ़रहत अब्बास शाह

कभी सहर तो कभी शाम ले गया मुझ से

फ़रहत अब्बास शाह

शहर-दर-शहर दीदा-वर भटके

फ़रहत अब्बास

जल्वा है वो कि ताब-ए-नज़र तक नहीं रही

फ़रहत अब्बास

तू मिरी इब्तिदा तू मिरी इंतिहा मैं समुंदर हूँ तू साहिलों की हवा

फ़रहान सालिम

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