दर Poetry (page 58)

अचार का मर्तबान

फ़य्याज़ तहसीन

समुंदर सर पटक कर मर रहा था

फ़े सीन एजाज़

उस की गली में ज़र्फ़ से बढ़ कर मिला मुझे

फ़व्वाद अहमद

उन निगाहों को हम-आवाज़ किया है मैं ने

फ़व्वाद अहमद

तुम्हारे लिए मुस्कुराती सहर है

फ़व्वाद अहमद

ज़मीं से रिश्ता-ए-दीवार-ओ-दर भी रखना है

फ़ातिमा हसन

ख़ुशबू है और धीमा सा दुख फैला है

फ़ातिमा हसन

उस की दीवार पे मनक़ूश है वो हर्फ़-ए-वफ़ा

फ़सीह अकमल

मैं अपनी रूह लिए दर-ब-दर भटकता रहा

फ़रियाद आज़र

पड़ा था लिखना मुझे ख़ुद ही मर्सिया मेरा

फ़रियाद आज़र

हम हैं बस इज़्न-ए-सफ़र होने तक

फ़रताश सय्यद

तन्हा छोड़ के जाने वाले इक दिन पछताओगे

फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी

पौ फटी एक ताज़ा कहानी मिली

फ़ारूक़ शफ़क़

सुनहरी दरवाज़े के बाहर

फ़ारूक़ नाज़की

मौत

फ़ारूक़ नाज़की

मातम-ए-नीम-ए-शब

फ़ारूक़ नाज़की

और मैं चुप रहा

फ़ारूक़ नाज़की

पूरे क़द से मैं खड़ा हूँ सामने आएगा क्या

फ़ारूक़ नाज़की

फिर पहाड़ों से उतर कर आएँगे

फ़ारूक़ नाज़की

मेरे चेहरे की स्याही का पता दे कोई

फ़ारूक़ नाज़की

जूँही बाम-ओ-दर जागे

फ़ारूक़ नाज़की

बस्ती से दूर जा के कोई रो रहा है क्यूँ

फ़ारूक़ नाज़की

अपनी ग़ज़ल को ख़ून का सैलाब ले गया

फ़ारूक़ नाज़की

उजले माथे पे नाम लिख रक्खें

फ़ारूक़ मुज़्तर

नक़्श आख़िर आप अपना हादिसा हो जाएगा

फ़ारूक़ मुज़्तर

मैं मो'तबर हूँ इश्क़ मिरा मो'तबर नहीं

फ़ारूक़ अंजुम

रंग-दर-रंग हिजाबात उठाने होंगे

फ़ारिग़ बुख़ारी

मैं कि अब तेरी ही दीवार का इक साया हूँ

फ़ारिग़ बुख़ारी

जबीं का चाँद बनूँ आँख का सितारा बनूँ

फ़ारिग़ बुख़ारी

दो झुकी आँखों का पहुँचा जब मिरे दिल को सलाम

फ़रहत शहज़ाद

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