दर्द Poetry (page 82)

ये दिल का दर्द तो उम्रों का रोग है प्यारे

अहमद फ़राज़

इक ये भी तो अंदाज़-ए-इलाज-ए-ग़म-ए-जाँ है

अहमद फ़राज़

अब तिरा ज़िक्र भी शायद ही ग़ज़ल में आए

अहमद फ़राज़

तो बेहतर है यही

अहमद फ़राज़

मुझ से पहले

अहमद फ़राज़

ख़्वाबों के ब्योपारी

अहमद फ़राज़

ऐ मेरे सारे लोगो

अहमद फ़राज़

अभी हम ख़ूबसूरत हैं

अहमद फ़राज़

तेरे क़रीब आ के बड़ी उलझनों में हूँ

अहमद फ़राज़

तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चराग़

अहमद फ़राज़

तिरा क़ुर्ब था कि फ़िराक़ था वही तेरी जल्वागरी रही

अहमद फ़राज़

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

अहमद फ़राज़

शगुफ़्त-ए-गुल की सदा में रंग-ए-चमन में आओ

अहमद फ़राज़

मुंतज़िर कब से तहय्युर है तिरी तक़रीर का

अहमद फ़राज़

मिज़ाज हम से ज़ियादा जुदा न था उस का

अहमद फ़राज़

ख़ामोश हो क्यूँ दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते

अहमद फ़राज़

कशीदा सर से तवक़्क़ो अबस झुकाव की थी

अहमद फ़राज़

जिस से ये तबीअत बड़ी मुश्किल से लगी थी

अहमद फ़राज़

जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम हो

अहमद फ़राज़

जब यार ने रख़्त-ए-सफ़र बाँधा कब ज़ब्त का पारा उस दिन था

अहमद फ़राज़

हर एक बात न क्यूँ ज़हर सी हमारी लगे

अहमद फ़राज़

गुमाँ यही है कि दिल ख़ुद उधर को जाता है

अहमद फ़राज़

ग़नीम से भी अदावत में हद नहीं माँगी

अहमद फ़राज़

दुख फ़साना नहीं कि तुझ से कहें

अहमद फ़राज़

अब क्या सोचें क्या हालात थे किस कारन ये ज़हर पिया है

अहमद फ़राज़

अब के तजदीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ

अहमद फ़राज़

यूँ दर्द ने उम्मीद के लड़ से मुझे बाँधा

अहमद फ़क़ीह

सदियों के अँधेरे में उतारा करे कोई

अहमद फ़क़ीह

शाख़-ए-अरमाँ की वही बे-सब्री आज भी है

अहमद अज़ीमाबादी

ये तिरा हिज्र अता दर्द अता कर्ब अता

अहमद अता

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