धूप Poetry (page 8)

समाअतों में बहुत दूर की सदा ले कर

स्वप्निल तिवारी

नींद से आ कर बैठा है

स्वप्निल तिवारी

मुँह अँधेरे तेरी यादों से निकलना है मुझे

स्वप्निल तिवारी

मिरे घर में न होगी रौशनी क्या

स्वप्निल तिवारी

धीरे धीरे ढलते सूरज का सफ़र मेरा भी है

स्वप्निल तिवारी

कभी अपने इश्क़ पे तब्सिरे कभी तज़्किरे रुख़-ए-यार के

सुरूर बाराबंकवी

अच्छा लगता है मुझे!

सुरय्या अब्बास

सुनहरी धूप खिली है कई दिनों के ब'अद

सुनील आफ़ताब

हुआ नहीं है अभी मुन्हरिफ़ ज़बान से वो

सुल्तान सुकून

जो कश्मकश थी तिरा इंतिज़ार करते हुए

सुलतान निज़ामी

झिजक रहा हूँ उसे आश्कार करते हुए

सुलतान निज़ामी

ये जो हम अतलस ओ किम-ख़्वाब लिए फिरते हैं

सुल्तान अख़्तर

वही बे-सबब से निशाँ हर तरफ़

सुल्तान अख़्तर

तन्हाइयों की बर्फ़ थी बिस्तर पे जा-ब-जा

सुल्तान अख़्तर

तन्हाई की ख़लीज है यूँ दरमियान में

सुल्तान अख़्तर

सरसब्ज़ मौसमों का असर ले गया कोई

सुल्तान अख़्तर

मिरे चारों तरफ़ ये साज़िश-ए-तस्ख़ीर कैसी है

सुल्तान अख़्तर

ख़्वाबों की लज़्ज़तों पे थकन का ग़िलाफ़ था

सुल्तान अख़्तर

जिस को क़रीब पाया उसी से लिपट गए

सुल्तान अख़्तर

दस्तार-ए-एहतियात बचा कर न आएगा

सुल्तान अख़्तर

अब तक लहू का ज़ाइक़ा ख़ंजर पे नक़्श है

सुल्तान अख़्तर

शनाख़्त मिट गई चेहरे पे गर्द इतनी थी

सुलेमान ख़ुमार

दश्त में ये जाँ-फ़ज़ाँ मंज़र कहाँ से आ गए

सुलेमान ख़ुमार

दश्त में घास का मंज़र भी मुझे चाहिए है

सुलेमान ख़ुमार

भेस क्या क्या न ज़माने में बनाए हम ने

सुलैमान अरीब

ऐ हमराज़

सूफ़िया अनजुम ताज

तंहाई

सूफ़ी तबस्सुम

हर तरफ़ ज़ीस्त की राहों में कड़ी धूप है दोस्त

सुदर्शन फ़ाकिर

हम न सही

सुबोध लाल साक़ी

ख़ुशनुमा पल की गिरफ़्तारी करें

सोनरूपा विशाल

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