दिया Poetry (page 47)

बे-इल्तिफ़ाती

हसन नईम

वो भी कहता था कि उस ग़म का मुदावा ही नहीं

हसन नईम

ना-उमीदी ने यूँ सताया था

हसन नईम

न मेरे ख़्वाब को पैकर न ख़द्द-ओ-ख़ाल दिया

हसन नईम

माल-ओ-मता-ए-दश्त सराबों को दे दिया

हसन नईम

कोह के सीने से आब-ए-आतशीं लाता कोई

हसन नईम

जो ग़म के शो'लों से बुझ गए थे हम उन के दाग़ों का हार लाए

हसन नईम

जब्र-ए-शही का सिर्फ़ बग़ावत इलाज है

हसन नईम

दिल वो किश्त-ए-आरज़ू था जिस की पैमाइश न की

हसन नईम

दिल में हो आस तो हर काम सँभल सकता है

हसन नईम

तिरी जुदाई ने ये क्या बना दिया है मुझे

हसन जमील

नज़र में मंज़र-ए-रफ़्ता समा भी सकता है

हसन जमील

वो मन गए तो वस्ल का होगा मज़ा नसीब

हसन बरेलवी

चश्म-ए-ज़ाहिर से रुख़-ए-यार का पर्दा देखा

हसन बरेलवी

कमाँ उठाओ कि हैं सामने निशाने बहुत

हसन अज़ीज़

इक क़िस्सा-ए-तवील है अफ़्साना दश्त का

हसन अज़ीज़

दिल को आमादा-ए-वफ़ा रखिए

हसन अख्तर जलील

एक दिया कब रोक सका है रात को आने से

हसन अकबर कमाल

उसे शिकस्त न होने पे मान कितना था

हसन अकबर कमाल

क्या होता है ख़िज़ाँ बहार के आने जाने से

हसन अकबर कमाल

पल रहे हैं कितने अंदेशे दिलों के दरमियाँ

हसन आबिदी

हम तीरगी में शम्अ जलाए हुए तो हैं

हसन आबिदी

तअल्लुक़ तोड़ने में पहल मुश्किल मरहला था

हसन अब्बास रज़ा

शाम-ए-विदाअ थी मगर उस रंग-बाज़ ने

हसन अब्बास रज़ा

क्या शख़्स था उड़ाता रहा उम्र भर मुझे

हसन अब्बास रज़ा

धड़कती क़ुर्बतों के ख़्वाब से जागे तो जाना

हसन अब्बास रज़ा

सीने की ख़ानक़ाह में आने नहीं दिया

हसन अब्बास रज़ा

मैं तलाश में किसी और की मुझे ढूँढता कोई और है

हसन अब्बास रज़ा

हमें तो ख़्वाहिश-ए-दुनिया ने रुस्वा कर दिया है

हसन अब्बास रज़ा

हम तीरगी में शम्अ' जलाए हुए तो हैं

हसन आबिद

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