दुश्मन Poetry (page 16)

हम कहाँ के दाना थे किस हुनर में यकता थे

ग़ालिब

अब जफ़ा से भी हैं महरूम हम अल्लाह अल्लाह

ग़ालिब

ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है

ग़ालिब

ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना

ग़ालिब

रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़

ग़ालिब

रहा गर कोई ता-क़यामत सलामत

ग़ालिब

क़फ़स में हूँ गर अच्छा भी न जानें मेरे शेवन को

ग़ालिब

नहीं है ज़ख़्म कोई बख़िये के दर-ख़ुर मिरे तन में

ग़ालिब

मिलती है ख़ू-ए-यार से नार इल्तिहाब में

ग़ालिब

किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो

ग़ालिब

ख़तर है रिश्ता-ए-उल्फ़त रग-ए-गर्दन न हो जावे

ग़ालिब

कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया

ग़ालिब

जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी

ग़ालिब

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना

ग़ालिब

इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही

ग़ालिब

दिया है दिल अगर उस को बशर है क्या कहिए

ग़ालिब

चाहिए अच्छों को जितना चाहिए

ग़ालिब

आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त

ग़ालिब

दिल तमाम आईने तीरा कौन रौशन कौन

गौहर होशियारपुरी

एहसास-ए-जुर्म जान का दुश्मन है 'जाफ़री'

फ़ुज़ैल जाफ़री

घर से बे-ज़ार हूँ कॉलेज में तबीअ'त न लगे

फ़ुज़ैल जाफ़री

दिल मुतमइन है हर्फ़-ए-वफ़ा के बग़ैर भी

फ़ुज़ैल जाफ़री

भूले-बिसरे हुए ग़म फिर उभर आते हैं कई

फ़ुज़ैल जाफ़री

ये जो दुश्मन ग़म-ए-निहानी है

फ्रांस गॉड्लिब क्वीन फ़्रेस्को

अब नहीं कोई ठिकाना अपना

फ़ीरोज़ा ख़ुसरो

ग़म तिरा जल्वा-गह-ए-कौन-ओ-मकाँ है कि जो था

फ़िराक़ गोरखपुरी

अपने होने के जो आसार बनाने हैं मुझे

फ़ाज़िल जमीली

ये दौर कैसा है या-इलाही कि दोस्त दुश्मन से कम नहीं है

फ़ाज़िल अंसारी

दिल के मकाँ में आँख के आँगन में कुछ न था

फ़ाज़िल अंसारी

इश्क़ किया तो अपनी ही नादानी थी

फ़े सीन एजाज़

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