प्रेम Poetry (page 9)

दिलों में रहिए जहाँ के वले ख़ुदा के ढब

वली उज़लत

बहार आई जुनूँ लेगा हमारा इम्तिहाँ देखें

वली उज़लत

ऐ नासेह चश्म-ए-तर से मत कर आँसू पाक रहने दे

वली उज़लत

जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे

वली मोहम्मद वली

तिरा मजनूँ हूँ सहरा की क़सम है

वली मोहम्मद वली

शग़्ल बेहतर है इश्क़-बाज़ी का

वली मोहम्मद वली

मत ग़ुस्से के शो'ले सूँ जलते कूँ जलाती जा

वली मोहम्मद वली

मैं आशिक़ी में तब सूँ अफ़्साना हो रहा हूँ

वली मोहम्मद वली

किया मुझ इश्क़ ने ज़ालिम कूँ आब आहिस्ता आहिस्ता

वली मोहम्मद वली

जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे

वली मोहम्मद वली

जिस दिलरुबा सूँ दिल कूँ मिरे इत्तिहाद है

वली मोहम्मद वली

जब तुझ अरक़ के वस्फ़ में जारी क़लम हुआ

वली मोहम्मद वली

इश्क़ में सब्र-ओ-रज़ा दरकार है

वली मोहम्मद वली

इश्क़ बेताब-ए-जाँ-गुदाज़ी है

वली मोहम्मद वली

हुए हैं राम पीतम के नयन आहिस्ता-आहिस्ता

वली मोहम्मद वली

हुआ ज़ाहिर ख़त-ए-रू-ए-निगार आहिस्ता-आहिस्ता

वली मोहम्मद वली

अगर गुलशन तरफ़ वो नौ-ख़त-ए-रंगीं-अदा निकले

वली मोहम्मद वली

इश्क़ बिन जीने के आदाब नहीं आते हैं

वाली आसी

जी का जंजाल है इश्क़ मियाँ क़िस्सा ये तमाम करो 'वाली'

वाली आसी

ज़िंदगी दस्त-ए-तह-ए-संग रही है बरसों

वकील अख़्तर

सुना है कूच तो उन का पर इस को क्या कहिए

वाजिद अली शाह अख़्तर

सुन रक्खो उसे दिल का लगाना नहीं अच्छा

वाजिद अली शाह अख़्तर

सहे ग़म पए रफ़्तगाँ कैसे कैसे

वाजिद अली शाह अख़्तर

हाल-ए-दिल ऐ बुतो ख़ुदा जाने

वाजिद अली शाह अख़्तर

चाक चाक अपना गरेबाँ न हुआ था सो हुआ

वाजिद अली शाह अख़्तर

बरबाद न कर उस को ज़रा हाथ पे धर ला

वाजिद अली शाह अख़्तर

अच्छा हुआ कि इश्क़ में बर्बाद हो गए

वजीह सानी

ना-मुरादी ही लिखी थी सो वो पूरी हो गई

वजद चुगताई

दुनिया अपनी मंज़िल पहुँची तुम घर में बेज़ार पड़े

वजद चुगताई

तेरा मरना इश्क़ का आग़ाज़ था

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

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