प्रेम Poetry (page 7)

आँख दिखलाने लगा है वो फ़ुसूँ-साज़ मुझे

यगाना चंगेज़ी

इतनी तो दीद-ए-इश्क़ की तासीर देखिए

वज़ीर अली सबा लखनवी

क़ब्र पर बाद-ए-फ़ना आइएगा

वज़ीर अली सबा लखनवी

नफ़्स नमरूद है क्या होना है

वज़ीर अली सबा लखनवी

दिल है ग़िज़ा-ए-रंज जिगर है ग़िज़ा-ए-रंज

वज़ीर अली सबा लखनवी

बच कर कहाँ मैं उन की नज़र से निकल गया

वज़ीर अली सबा लखनवी

आया जो मौसम-ए-गुल तो ये हिसाब होगा

वज़ीर अली सबा लखनवी

आई ऐ गुल-एज़ार क्या कहना

वज़ीर अली सबा लखनवी

ज़ुलेख़ा के वक़ार-ए-इश्क़ को सहरा से क्या निस्बत

वासिफ़ देहलवी

जो रंग-ए-इश्क़ से फ़ारिग़ हो उस को दिल नहीं कहते

वासिफ़ देहलवी

किसी के इश्क़ का ये मुस्तक़िल आज़ार क्या कहना

वासिफ़ देहलवी

हरीम-ए-नाज़ को हम ग़ैर की महफ़िल नहीं कहते

वासिफ़ देहलवी

तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते

वसीम बरेलवी

जब से मैं ने इश्क़ का पैराहन पहना है

वसीम अकरम

लहू लहू सा दिल-ए-दाग़-दार ले के चले

वाक़िफ़ राय बरेलवी

इस बहाने के बा'द कैसा इश्क़

वक़ार सहर

ख़ता क़ुबूल नहीं है तो ख़ुद ख़ता कर देख

वक़ार ख़ान

वो निगाह मिल के निगाह से ब-अदा-ए-ख़ास झिझक गई

वक़ार बिजनोरी

उन की चश्म-ए-मस्त में पोशीदा इक मय-ख़ाना था

वक़ार बिजनोरी

रह-ए-कहकशाँ से गुज़र गया हमा-ईन-ओ-आँ से गुज़र गया

वक़ार बिजनोरी

चश्म-ए-यक़ीं से देखिए जल्वा-गह-ए-सिफ़ात में

वक़ार बिजनोरी

ज़बाँ तक जो न आए वो मोहब्बत और होती है

वामिक़ जौनपुरी

तुझ से मिल कर दिल में रह जाती है अरमानों की बात

वामिक़ जौनपुरी

तक़्सीर क्या है हसरत-ए-दीदार ही तो है

वामिक़ जौनपुरी

मिरे फ़िक्र ओ फ़न को नई फ़ज़ा नए बाल-ओ-पर की तलाश है

वामिक़ जौनपुरी

काश हम नाकाम भी काम आएँ तेरे इश्क़ में

वलीउल्लाह मुहिब

दर्स-ए-इल्म-ए-इश्क़ से वाक़िफ़ नहीं मुतलक़ फ़क़ीह

वलीउल्लाह मुहिब

बे-इश्क़ जितनी ख़ल्क़ है इंसाँ की शक्ल में

वलीउल्लाह मुहिब

ऐ दिल तुझे करनी है अगर इश्क़ से बैअ'त

वलीउल्लाह मुहिब

वहीं जी उठते हैं मुर्दे ये क्या ठोकर से छूना है

वलीउल्लाह मुहिब

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