जान Poetry (page 10)

ज़माने में मोहब्बत की अगर बारिश नहीं होती

सय्यद आरिफ़ अली

जो माल उस ने समेटा था वो भी सारा गया

सय्यद अनवार अहमद

शौक़-ए-वारफ़्ता को मलहूज़-ए-अदब भी होगा

सय्यद अमीन अशरफ़

न जाने रौज़न-ए-दीवार क्या जादू जगाता है

सय्यद अमीन अशरफ़

हम ने जो उस की मिदहतों से कान भर दिए

सय्यद अाग़ा अली महर

अपनी आँखों से जो वो ओझल है

सय्यद अाग़ा अली महर

कहते थे तुझी को जान अपनी

सय्यद आबिद अली आबिद

हम बिन ग़म-ए-यार भी जिए हैं

सय्यद आबिद अली आबिद

तेरे मिलने का आख़िरी इम्कान

स्वप्निल तिवारी

सूने सूने से फ़लक पर इक घटा बनती हुई

स्वप्निल तिवारी

बुलबुल ओ परवाना

सुरूर जहानाबादी

चमन में लाला-ओ-गुल पर निखार भी तो नहीं

सुरूर बाराबंकवी

यूँ तो सब सामान पड़ा है

सुरेन्द्र शजर

अजब सी बद-हवासी छा रही है

सुनील कुमार जश्न

मेरे ख़ुश-आइंद-मुस्तक़बिल का पैग़म्बर भी तू

सुलतान रशक

आख़िरी लफ़्ज़ पहली आवाज़

सुलैमान अरीब

हर बात तिरी जान-ए-जहाँ मान रहा हूँ

सुलैमान अरीब

वो मिज़ाज दिल के बदल गए कि वो कारोबार नहीं रहा

सुलैमान अहमद मानी

वफ़ा का इम्तिहाँ है जान-आे-तन की आज़माइश है

सुलैमान आसिफ़

किसी की याद में शमएँ जलाना भूल जाता है

सुहैल सानी

जब शाम बढ़ी रात का चाक़ू निकल आया

सुहैल अहमद ज़ैदी

शौक़-ए-बुतान-ए-अंजुमन-आरा लिए हुए

सुहा मुजद्ददी

ऐ हमराज़

सूफ़िया अनजुम ताज

साज़ के मौजों पे नग़्मों की सवारी मैं थी

सूफ़िया अनजुम ताज

जाने किस की थी ख़ता याद नहीं

सूफ़ी तबस्सुम

पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम पत्थर के ही इंसाँ पाए हैं

सुदर्शन फ़ाकिर

मेरे अंदर

सुबोध लाल साक़ी

जिस दिन से मिरी तुम से शनासाई हुई है

सिया सचदेव

अब तिरे शहर से चुप-चाप गुज़रना होगा

सिया सचदेव

दिन को बहर-ओ-बर का सीना चीर कर रख दीजिए

सिराजुद्दीन ज़फ़र

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