वस्त्र Poetry (page 9)

मेरी मौत के मसीहा!

एजाज़ अहमद एजाज़

डर डर के जिसे मैं सुन रहा हूँ

एहतिशाम हुसैन

कभी कभी जो वो ग़ुर्बत-कदे में आए हैं

एहसान दानिश

शदीद गरमी के मौसम में मुशाइरा

दिलावर फ़िगार

अहमक़ों की कांफ्रेंस

दिलावर फ़िगार

मायूस-ए-अज़ल हूँ ये माना नाकाम-ए-तमन्ना रहना है

दिल शाहजहाँपुरी

एक और शराबी शाम

दर्शिका वसानी

गया कि सैल-ए-रवाँ का बहाव ऐसा था

दानियाल तरीर

भला हो पीर-ए-मुग़ाँ का इधर निगाह मिले

दाग़ देहलवी

ख़ामुशी में क़यास मेरा है

बबल्स होरा सबा

जब चौदहवीं का चाँद निकलता दिखाई दे

बिमल कृष्ण अश्क

कभी तो सामने आ बे-लिबास हो कर भी

भवेश दिलशाद

मैं क्या बताऊँ कैसी परेशानियों में हूँ

भारत भूषण पन्त

दरिया ने कल जो चुप का लिबादा पहन लिया

बेदिल हैदरी

अब आदमी कुछ और हमारी नज़र में है

बेदम शाह वारसी

यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं

बशीर बद्र

तहज़ीब के लिबास उतर जाएँगे जनाब

बशीर बद्र

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो

बशीर बद्र

सँवार नोक-पलक अबरुओं में ख़म कर दे

बशीर बद्र

आहन में ढलती जाएगी इक्कीसवीं सदी

बशीर बद्र

कभी तो याद के गुल-दान में सजाऊँ उसे

बाक़र नक़वी

गोडो

बाक़र मेहदी

फ़ज़ा का रंग निखरता दिखाई देता है

अज़रा वहीद

ख़ाली बेंच

अज़रा अब्बास

दिन

अज़रा अब्बास

अब कौन सी मता-ए-सफ़र दिल के पास है

अज़ीज़ तमन्नाई

मैं छुप रहा हूँ कि जाने किस दम

अज़ीज़ नबील

बिखेरता है क़यास मुझ को

अज़ीज़ नबील

ये फ़ज़ा-ए-साज़-ओ-मुज़रिब ये हुजूम-ताज-ए-दाराँ

अज़ीज़ हामिद मदनी

वो एक रौ जो लब-ए-नुक्ता-चीं में होती है

अज़ीज़ हामिद मदनी

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