महफ़िल Poetry (page 24)

इस इंतिज़ार में बैठे हैं उन की महफ़िल में

दिवाकर राही

ज़रा भी शोर मौजों का नहीं है

दिवाकर राही

शदीद गरमी के मौसम में मुशाइरा

दिलावर फ़िगार

अदा-ए-हैरत-ए-आईना-गर भी रखते हैं

दिल अय्यूबी

नहीं कहते किसी से हाल-ए-दिल ख़ामोश रहते हैं

द्वारका दास शोला

लुत्फ़ हो हश्र में कुछ बात बनाए न बने

दत्तात्रिया कैफ़ी

हुस्न-ए-अज़ल का जल्वा हमारी नज़र में है

दत्तात्रिया कैफ़ी

चश्म-ए-बीना हो तो क़ैद-ए-हरम-ओ-तूर नहीं

दर्शन सिंह

शीशे से ज़ियादा नाज़ुक था ये शीशा-ए-दिल जो टूट गया

दानिश फ़राही

हज़रत-ए-दाग़ जहाँ बैठ गए बैठ गए

दाग़ देहलवी

भरे हैं तुझ में वो लाखों हुनर ऐ मजमअ-ए-ख़ूबी

दाग़ देहलवी

और होंगे तिरी महफ़िल से उभरने वाले

दाग़ देहलवी

उज़्र उन की ज़बान से निकला

दाग़ देहलवी

उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं

दाग़ देहलवी

तुम आईना ही न हर बार देखते जाओ

दाग़ देहलवी

तेरी सूरत को देखता हूँ मैं

दाग़ देहलवी

तमाशा-ए-दैर-ओ-हरम देखते हैं

दाग़ देहलवी

क़रीने से अजब आरास्ता क़ातिल की महफ़िल है

दाग़ देहलवी

मिन्नतों से भी न वो हूर-शमाइल आया

दाग़ देहलवी

मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है

दाग़ देहलवी

ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया

दाग़ देहलवी

बुतान-ए-माहवश उजड़ी हुई मंज़िल में रहते हैं

दाग़ देहलवी

भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं

दाग़ देहलवी

फ़ज़ा-ए-ना-उमीदी में उमीद-अफ़ज़ा पयाम आया

चरख़ चिन्योटी

समंदर का सुकूत

चन्द्रभान ख़याल

ले उड़ा रंग फ़लक जल्वा-ए-रा'नाई का

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

दिलकशी नाम को भी आलम-ए-इम्काँ में नहीं

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

एक साग़र भी इनायत न हुआ याद रहे

चकबस्त ब्रिज नारायण

अगर दर्द-ए-मोहब्बत से न इंसाँ आश्ना होता

चकबस्त ब्रिज नारायण

वही होती है रहबर जो तमन्ना दिल में होती है

बिस्मिल सईदी

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