एक साग़र भी इनायत न हुआ याद रहे
साक़िया जाते हैं महफ़िल तिरी आबाद रहे
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ज़िंदगी क्या है अनासिर में ज़ुहूर-ए-तरतीब
ये कैसी बज़्म है और कैसे उस के साक़ी हैं
अदब ता'लीम का जौहर है ज़ेवर है जवानी का
हम सोचते हैं रात में तारों को देख कर
ख़ाक-ए-हिंद
कभी था नाज़ ज़माने को अपने हिन्द पे भी
मंज़िल-ए-इबरत है दुनिया अहल-ए-दुनिया शाद हैं
नया बिस्मिल हूँ मैं वाक़िफ़ नहीं रस्म-ए-शहादत से
न कोई दोस्त दुश्मन हो शरीक-ए-दर्द-ओ-ग़म मेरा
मज़ा है अहद-ए-जवानी में सर पटकने का
इक सिलसिला हवस का है इंसाँ की ज़िंदगी
रामायण का एक सीन