इक सिलसिला हवस का है इंसाँ की ज़िंदगी
इस एक मुश्त-ए-ख़ाक को ग़म दो-जहाँ के हैं
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Gulzar
Rahat Indori
Wasi Shah
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1520) Peoples Rate This
नया बिस्मिल हूँ मैं वाक़िफ़ नहीं रस्म-ए-शहादत से
हमारा वतन दिल से प्यारा वतन
मर्सिया गोपाल कृष्ण गोखले
कभी था नाज़ ज़माने को अपने हिन्द पे भी
दिल किए तस्ख़ीर बख़्शा फ़ैज़-ए-रूहानी मुझे
ज़बान-ए-हाल से ये लखनऊ की ख़ाक कहती है
रामायण का एक सीन
नए झगड़े निराली काविशें ईजाद करते हैं
ये कैसी बज़्म है और कैसे उस के साक़ी हैं
अज़ीज़ान-ए-वतन को ग़ुंचा ओ बर्ग ओ समर जाना
ख़ुदा ने इल्म बख़्शा है अदब अहबाब करते हैं
किया है फ़ाश पर्दा कुफ़्र-ओ-दीं का इस क़दर मैं ने