उम्र Poetry (page 33)

मक़्तल के इस सुकूत पे हैरत है क्या कहें

इफ़्तिख़ार आज़मी

न कू-ए-यार में ठहरा न अंजुमन में रहा

इब्राहीम अश्क

अना ने टूट के कुछ फ़ैसला किया ही नहीं

इब्राहीम अश्क

बड़े ग़ज़ब का है यारो बड़े अज़ाब का ज़ख़्म

इब्न-ए-सफ़ी

एक दिन देखने को आ जाते

इब्न-ए-इंशा

इस बस्ती के इक कूचे में

इब्न-ए-इंशा

शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती

इब्न-ए-इंशा

किस को पार उतारा तुम ने किस को पार उतारोगे

इब्न-ए-इंशा

हमें तुम पे गुमान-ए-वहशत था हम लोगों को रुस्वा किया तुम ने

इब्न-ए-इंशा

और तो कोई बस न चलेगा हिज्र के दर्द के मारों का

इब्न-ए-इंशा

किरन किरन के दरख़्शंदा बाब मेरे हैं

हुसैन सहर

इतनी सी इस जहाँ की हक़ीक़त है और बस

हुसैन सहर

आँखों से किसी ख़्वाब को बाहर नहीं देखा

हुमैरा राहत

दिल को ग़म रास है यूँ गुल को सबा हो जैसे

होश तिर्मिज़ी

देखे हैं जो ग़म दिल से भुलाए नहीं जाते

होश तिर्मिज़ी

कोई भी शख़्स जो वहम-ओ-गुमाँ की ज़द में रहा

हीरानंद सोज़

मुद्दत के बाद

हिमायत अली शाएर

हरीफ़-ए-विसाल

हिमायत अली शाएर

आईना-दर-आईना

हिमायत अली शाएर

बदन पे पैरहन-ए-ख़ाक के सिवा क्या है

हिमायत अली शाएर

दिल फ़ुर्क़त-ए-हबीब में दीवाना हो गया

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

तड़प के हाल सुनाया तो आँख भर आई

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

बहुत कठिन है डगर थोड़ी दूर साथ चलो

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

कोई ले कर ख़बर नहीं आता

हातिम अली मेहर

गुल-बाँग थी गुलों की हमारा तराना था

हातिम अली मेहर

कट गई एहतियात-ए-इश्क़ में उम्र

हसरत मोहानी

न छुटा हाथ से यक लहज़ा गरेबाँ मेरा

हसरत अज़ीमाबादी

है याद तुझ से मेरा वो शर्ह-ए-हाल देना

हसरत अज़ीमाबादी

हार कर बाज़ी फिर इक तदबीर हो जाऊँगा मैं

हसनैन आक़िब

था जो एक लम्हा विसाल का वो रियाज़ था कई साल का

हसन रिज़वी

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