उम्र Poetry (page 32)

सब तरह के हालात को इम्कान में रक्खा

इफ्तिखार शफ़ी

जुज़ क़ुर्बत-ए-जाँ पर्दा-ए-जाँ कोई नहीं था

इफ्तिखार शफ़ी

मैं शीशा क्यूँ न बना आदमी हुआ क्यूँकर

इफ़्तिख़ार नसीम

कटी है उम्र किसी आबदोज़ कश्ती में

इफ़्तिख़ार नसीम

तिरा है काम कमाँ में उसे लगाने तक

इफ़्तिख़ार नसीम

ख़ुद को हुजूम-ए-दहर में खोना पड़ा मुझे

इफ़्तिख़ार नसीम

इस तरह सोई हैं आँखें जागते सपनों के साथ

इफ़्तिख़ार नसीम

है जुस्तुजू अगर इस को इधर भी आएगा

इफ़्तिख़ार नसीम

कोई वजूद है दुनिया में कोई परछाईं

इफ़्तिख़ार मुग़ल

किसी सबब से अगर बोलता नहीं हूँ मैं

इफ़्तिख़ार मुग़ल

जमाल-गाह-ए-तग़ज़्ज़ुल की ताब-ओ-तब तिरी याद

इफ़्तिख़ार मुग़ल

भर आईं आँखें किसी भूली याद से शाम के मंज़र में

इफ़्तिख़ार बुख़ारी

बे-ख़बर मुझ से मिरे दिल में हमेशा हँसता

इफ़्तिख़ार बुख़ारी

मैं जिस को एक उम्र सँभाले फिरा किया

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हुआ है यूँ भी कि इक उम्र अपने घर न गए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ग़म-ए-जहाँ को शर्मसार करने वाले क्या हुए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया

इफ़्तिख़ार आरिफ़

तजाहुल-ए-आरिफ़ाना

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कूच

इफ़्तिख़ार आरिफ़

दुआ

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अबू-तालिब के बेटे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ये क़र्ज़-ए-कज-कुलही कब तलक अदा होगा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ये अब खुला कि कोई भी मंज़र मिरा न था

इफ़्तिख़ार आरिफ़

तार-ए-शबनम की तरह सूरत-ए-ख़स टूटती है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सितारों से भरा ये आसमाँ कैसा लगेगा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

समझ रहे हैं मगर बोलने का यारा नहीं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़ौफ़ के सैल-ए-मुसलसल से निकाले मुझे कोई

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कहाँ के नाम ओ नसब इल्म क्या फ़ज़ीलत क्या

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ग़म-ए-जहाँ को शर्मसार करने वाले क्या हुए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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