पता Poetry (page 12)

सुब्ह का भेद मिला क्या हम को

बाक़ी सिद्दीक़ी

क्या पता हम को मिला है अपना

बाक़ी सिद्दीक़ी

सारी बस्ती में फ़क़त मेरा ही घर है बे-चराग़

बाक़ी अहमदपुरी

तू नहीं तो तेरा दर्द-ए-जाँ-फ़ज़ा मिल जाएगा

बाक़ी अहमदपुरी

दुश्मन-ए-जाँ कोई बना ही नहीं

बाक़र मेहदी

जाने क्या सोच के घर तक पहुँचा

बक़ा बलूच

पूछना चाँद का पता 'आज़र'

बलवान सिंह आज़र

गर मुझे मेरी ज़ात मिल जाए

बलवान सिंह आज़र

हर शख़्स को गुमान कि मंज़िल नहीं है दूर

बद्र वास्ती

मुझ को नहीं मालूम कि वो कौन है क्या है

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

खड़ा था कौन कहाँ कुछ पता चला ही नहीं

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

दहर में इक तिरे सिवा क्या है

अज़ीज़ तमन्नाई

गुज़रने वाली हवा को बता दिया गया है

अज़ीज़ नबील

इस वहम की इंतिहा नहीं है

अज़ीज़ लखनवी

वो ये कह कह के जलाता था हमेशा मुझ को

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

न याद आया न भूला न सानेहा मुझ को

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

अलावा इक चुभन के क्या है ख़ुद से राब्ता मेरा

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

वो तड़प जाए इशारा कोई ऐसा देना

अज़हर इनायती

क़यामत आएगी माना ये हादिसा होगा

अज़हर इनायती

दश्त-ए-शब में पता ही नहीं चल सका

अज़हर अदीब

मैं सोचता हूँ सबक़ मैं ने वो पढ़ा ही नहीं

अज़ीज़ परीहारी

ये फूल जो मिट्टी के हयूलों से अटा है

अज़ीम कुरेशी

तेरे क़दमों की आहट को तरसा हूँ

आज़ाद गुलाटी

ये इक शान-ए-ख़ुदा है मैं नहीं हूँ

आज़ाद अंसारी

न शाम है न सवेरा अजब दयार में हूँ

अतहर नफ़ीस

किस दर्जा मिरे शहर की दिलकश है फ़ज़ा भी

अतहर नादिर

जिस को देखो वो गिरफ़्तार-ए-बला लगता है

अतीक़ मुज़फ़्फ़रपुरी

गाँव के परिंदे तुम को क्या पता बिदेसों में

अतीक़ अंज़र

जिस्म के घरौंदे में आग शोर करती है

अतीक़ अंज़र

मैं सच तो कह दूँ पर उस को कहीं बुरा न लगे

असरा रिज़वी

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