पूछना चाँद का पता 'आज़र'
जब अकेले में रात मिल जाए
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लोग भूके हैं बहुत और निवाले कम हैं
ऐसी होने लगी थकन उस को
बे-ख़ुदी साथ है मज़े में हूँ
क्यूँ छुपाते हो किधर जाना है
आप-बीती ज़रा सुना ऐ दश्त
मिरे सफ़र में ही क्यूँ ये अज़ाब आते हैं
पाँव मेरा फिर पड़ा है दश्त में
साक़ी खुलता है पैमाना खुलता है
तू भले मेरा ए'तिबार न कर
सच है या फिर मुग़ालता है मुझे
गर मुझे मेरी ज़ात मिल जाए
चलूँगा कब तलक तन्हा सफ़र में