तू भले मेरा ए'तिबार न कर
ज़िंदगी मैं तिरे कहे में हूँ
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बे-ख़ुदी साथ है मज़े में हूँ
सच है या फिर मुग़ालता है मुझे
हार जाएगी यक़ीनन तीरगी
आप-बीती ज़रा सुना ऐ दश्त
चलूँगा कब तलक तन्हा सफ़र में
कोई मंज़िल कभी नहीं आई
पाँव मेरा फिर पड़ा है दश्त में
दो क़दम साथ क्या चला रस्ता
पावँ से काँटा निकल जाए अगर
क्यूँ छुपाते हो किधर जाना है
मार देती है ज़िंदगी ठोकर
मिरे सफ़र में ही क्यूँ ये अज़ाब आते हैं