हार जाएगी यक़ीनन तीरगी
गर मुसलसल रौशनी ज़िंदा रही
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हादसा होता रहा है मुझ में
गर मुझे मेरी ज़ात मिल जाए
खुला मकान है हर एक ज़िंदगी 'आज़र'
पूछना चाँद का पता 'आज़र'
मार देती है ज़िंदगी ठोकर
पावँ से काँटा निकल जाए अगर
चलूँगा कब तलक तन्हा सफ़र में
ख़त्म होता ही नहीं मेरा सफ़र
जब कोई टीस दिल दुखाती है
दो क़दम साथ क्या चला रस्ता
सच है या फिर मुग़ालता है मुझे
हवा के दोश पर लगता है उड़ने