पावँ से काँटा निकल जाए अगर
अपनी रफ़्तार बढ़ा लूँ मैं भी
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जब कोई टीस दिल दुखाती है
खुला मकान है हर एक ज़िंदगी 'आज़र'
कोई मंज़िल कभी नहीं आई
हार जाएगी यक़ीनन तीरगी
चलूँगा कब तलक तन्हा सफ़र में
पाँव मेरा फिर पड़ा है दश्त में
गर मुझे मेरी ज़ात मिल जाए
हादसा होता रहा है मुझ में
पूछना चाँद का पता 'आज़र'
दो क़दम साथ क्या चला रस्ता
आप-बीती ज़रा सुना ऐ दश्त