कोई मंज़िल कभी नहीं आई
रास्ते में था रास्ते में हूँ
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सच है या फिर मुग़ालता है मुझे
हवा के दोश पर लगता है उड़ने
ऐसी होने लगी थकन उस को
मार देती है ज़िंदगी ठोकर
हादसा होता रहा है मुझ में
गर मुझे मेरी ज़ात मिल जाए
हार जाएगी यक़ीनन तीरगी
बे-ख़ुदी साथ है मज़े में हूँ
चलूँगा कब तलक तन्हा सफ़र में
साक़ी खुलता है पैमाना खुलता है
रात दिन इक बेबसी ज़िंदा रही