ख़त्म होता ही नहीं मेरा सफ़र
कोई थक-हार गया है मुझ में
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गर मुझे मेरी ज़ात मिल जाए
आप-बीती ज़रा सुना ऐ दश्त
चलूँगा कब तलक तन्हा सफ़र में
मिरे सफ़र में ही क्यूँ ये अज़ाब आते हैं
साक़ी खुलता है पैमाना खुलता है
कोई मंज़िल कभी नहीं आई
हार जाएगी यक़ीनन तीरगी
सच है या फिर मुग़ालता है मुझे
हादसा होता रहा है मुझ में
क्यूँ छुपाते हो किधर जाना है
हवा के दोश पर लगता है उड़ने
बे-ख़ुदी साथ है मज़े में हूँ