कदम Poetry (page 30)

उस की जानिब से बढ़ा एक क़दम

फरीहा नक़वी

इज़हार-ए-अक़ीदत में कहाँ तक निकल आए

फ़ारिग़ बुख़ारी

हर एक रास्ते का हम-सफ़र रहा हूँ मैं

फ़ारिग़ बुख़ारी

अपने ही साए में था में शायद छुपा हुआ

फ़ारिग़ बुख़ारी

ये ज़मीं ख़्वाब है आसमाँ ख़्वाब है

फ़रहत शहज़ाद

जब तक चराग़-ए-शाम-ए-तमन्ना जले चलो

फ़रहत शहज़ाद

मुँह-बोला बोल जगत का है जो मन में रहे सो अपना है

फ़रहत कानपुरी

ख़ाक ओ ख़ूँ की नई तंज़ीम में शामिल हो जाओ

फ़रहत एहसास

कभी ख़ुदा कभी इंसान रोक लेता है

फ़रहत एहसास

अक्स कुछ न बदलेगा आइनों को धोने से

फ़रहान सालिम

अभी मकाँ मैं अभी सू-ए-ला-मकाँ हूँ मैं

फ़रीद जावेद

अभी मकाँ मैं अभी सू-ए-ला-मकाँ हूँ मैं

फ़रीद जावेद

जला के दामन-ए-हस्ती का तार तार उठा

फ़रीद इशरती

इक दिल की ख़ातिर इतने तो फ़ित्ने कभी न थे

फ़राज़ सुल्तानपूरी

वो कहते हैं कि है टूटे हुए दिल पर करम मेरा

फ़ानी बदायुनी

संग-ए-दर देख के सर याद आया

फ़ानी बदायुनी

क्या छुपाते किसी से हाल अपना

फ़ानी बदायुनी

कुछ कम तो हुआ रंज-ए-फ़रावान-ए-तमन्ना

फ़ानी बदायुनी

वो और होंगे जिन को हरम की तलाश है

फ़ना बुलंदशहरी

तुम हो शरीक-ए-ग़म तो मुझे कोई ग़म नहीं

फ़ना बुलंदशहरी

तुझे ढूँढती हैं नज़रें मुझे इक झलक दिखा जा

फ़ना बुलंदशहरी

है वज्ह कोई ख़ास मिरी आँख जो नम है

फ़ना बुलंदशहरी

दुनिया के हर ख़याल से बेगाना कर दिया

फ़ना बुलंदशहरी

बा-होश वही हैं दीवाने उल्फ़त में जो ऐसा करते हैं

फ़ना बुलंदशहरी

कोई तसव्वुर में जल्वा-गर है बहार दिल में समा रही है

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

ग़म-ए-जानाँ के सिवा कुछ हमें प्यारा न हुआ

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

सुब्ह-ए-नौ लाती है हर शाम तुम्हें क्या मा'लूम

फ़ैज़ुल हसन

लोग कहते हैं बहुत हम ने कमाई दुनिया

फ़ैज़ ख़लीलाबादी

ज़िंदाँ की एक सुब्ह

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तुम ये कहते हो अब कोई चारा नहीं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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