रंग Poetry (page 53)

काँच के पार तिरे हाथ नज़र आते हैं

गुलज़ार

आग में क्या क्या जला है शब भर

गुलज़ार

मंज़र! नर्सिंग-होम

गुलज़ार

लिबास

गुलज़ार

बोसकी

गुलज़ार

गुलों को सुनना ज़रा तुम सदाएँ भेजी हैं

गुलज़ार

एक परवाज़ दिखाई दी है

गुलज़ार

ऐसा ख़ामोश तो मंज़र न फ़ना का होता

गुलज़ार

सफ़र का रंग हसीं क़ुर्बतों का हामिल हो

गुलनार आफ़रीन

शजर-ए-उम्मीद भी जल गया वो वफ़ा की शाख़ भी जल गई

गुलनार आफ़रीन

हमारा नाम पुकारे हमारे घर आए

गुलनार आफ़रीन

आँसू भी वही कर्ब के साए भी वही हैं

गुलनार आफ़रीन

गुल-एज़ार और भी यूँ रखते हैं रंग और नमक

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

जहान-ए-रंग-ओ-बू कितना हसीं है

ग़ुलाम नबी हकीम

तारीकियों में अपनी ज़िया छोड़ जाऊँगा

गुहर खैराबादी

ग़म नहीं जो लुट गए हम आ के मंज़िल के क़रीब

गुहर खैराबादी

जो पिन्हाँ था वही हर सू अयाँ है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

भूला है बा'द-ए-मर्ग मुझे दोस्त याँ तलक

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

तेरा ख़ुलूस-ए-दिल तो महल्ल-ए-नज़र नहीं

गोपाल मित्तल

आँखों में नए रंग सजाने नहीं उतरे

गिरिजा व्यास

कितना भी रंग-ओ-नस्ल में रखते हों इख़्तिलाफ़

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

उबल पड़ा यक-ब-यक समुंदर तो मैं ने देखा

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

ये भी इक रंग है शायद मिरी महरूमी का

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

प्यार गया तो कैसे मिलते रंग से रंग और ख़्वाब से ख़्वाब

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ज़िंदगी

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ऊँचे दर्जे का सैलाब

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

''अटलांटिक सिटी''

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

सब रंग ना-तमाम हों हल्का लिबास हो

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

मिलने की हर आस के पीछे अन-देखी मजबूरी थी

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

गुलाबों के नशेमन से मिरे महबूब के सर तक

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

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