रंग Poetry (page 96)

बदल रहे हैं ज़माने के रंग क्या क्या देख

आफ़ताब हुसैन

तुम्हारे बाद रहा क्या है देखने के लिए

आफ़ताब हुसैन

निगाह के लिए इक ख़्वाब भी ग़नीमत है

आफ़ताब हुसैन

कहाँ किसी पे ये एहसान करने वाला हूँ

आफ़ताब हुसैन

हर फूल है हवाओं के रुख़ पर खिला हुआ

आफ़ताब हुसैन

गए मंज़रों से ये क्या उड़ा है निगाह में

आफ़ताब हुसैन

फ़सील-ए-शहर-ए-तमन्ना में दर बनाते हुए

आफ़ताब हुसैन

देखे कोई तअल्लुक़-ए-ख़ातिर के रंग भी

आफ़ताब हुसैन

मुमकिन है शय वही हो मगर हू-ब-हू न हो

आफ़ताब अहमद

ग़म-ए-हयात के पेश-ओ-अक़ब नहीं पढ़ता

अफ़सर माहपुरी

जिगर को ख़ून किए दिल को बे-क़रार अभी

अफ़रोज़ आलम

ऐ दोस्त तिरी बात सहर-ख़ेज़ बहुत है

अफ़रोज़ आलम

शौक़-ए-वारफ़्ता चला शहर-ए-तमाशा की तरफ़

अफ़ीफ़ सिराज

मुझ को इक अर्सा-ए-दिल-गीर में रक्खा गया था

अफ़ीफ़ सिराज

मेरे जुनून-ए-शौक़ को इतनी सी काएनात बस

अफ़ीफ़ सिराज

हम अहल-ए-नज़ारा शाम-ओ-सहर आँखों को फ़िदया करते हैं

अफ़ीफ़ सिराज

हरीम-ए-दिल से निकल आँख के सराब में आ

अफ़ीफ़ सिराज

हमारी तिश्ना-लबी अब सुबू से खेलेगी

अफ़ीफ़ सिराज

जो बन-सँवर के वो इक माह-रू निकलता है

अादिल रशीद

वो मर गई थी

आदिल मंसूरी

नज़्म

आदिल मंसूरी

फ़ैज़

आदिल मंसूरी

अलिफ़ लफ़्ज़ ओ मआनी से मुबर्रा

आदिल मंसूरी

न कोई रोक सका ख़्वाब के सफ़ीरों को

आदिल मंसूरी

घूम रहा था एक शख़्स रात के ख़ारज़ार में

आदिल मंसूरी

दरवाज़ा बंद देख के मेरे मकान का

आदिल मंसूरी

सुकून-ए-दिल फ़ना है और मैं हूँ

आदिल हयात

हर इक जवाब की तह में सवाल आएगा

आदिल हयात

उसी एक फ़र्द के वास्ते मिरे दिल में दर्द है किस लिए

अदीम हाशमी

शामिल था ये सितम भी किसी के निसाब में

अदीम हाशमी

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