साथ Poetry (page 44)

साथ 'ग़ालिब' के गई फ़िक्र की गहराई भी

राजेश रेड्डी

आदमी ही के बनाए हुए ज़िंदाँ हैं ये सब

राजेश रेड्डी

न जिस्म साथ हमारे न जाँ हमारी तरफ़

राजेश रेड्डी

है कोई बैर सा उस को मिरी तदबीर के साथ

राजेश रेड्डी

दिन को दिन रात को मैं रात न लिखने पाऊँ

राजेश रेड्डी

वो सवालात मुझ पर उछाले गए

राजेन्द्र कलकल

ख़्वाब आँखों को हमारी जो दिखाए आइना

राजेन्द्र कलकल

फूल और काँटा

राजा मेहदी अली ख़ाँ

ख़रगोशों की ग़ज़ल

राजा मेहदी अली ख़ाँ

अदीब की महबूबा

राजा मेहदी अली ख़ाँ

आख़िरी गाली

राजा मेहदी अली ख़ाँ

हासिल का सफ़र

राज नारायण राज़

जाने किस ख़्वाब का सय्याल नशा हूँ मैं भी

राज नारायण राज़

बाहम सुलूक-ए-ख़ास का इक सिलसिला भी है

राज नारायण राज़

जब तक मुझे नसीब तिरी दोस्ती रही

राज कुमार सूरी नदीम

खोने की बात और न पाने की बात है

रईस सिद्दीक़ी

दुनिया में जो समझते थे बार-ए-गिराँ मुझे

रईस सिद्दीक़ी

मैं ने कितने रस्ते बदले लेकिन हर रस्ते में 'फ़रोग़'

रईस फ़रोग़

रेत का शहर

रईस फ़रोग़

नतशे ने कहा

रईस फ़रोग़

आज की रात

रईस फ़रोग़

सड़कों पे घूमने को निकलते हैं शाम से

रईस फ़रोग़

मैं तो हर लम्हा बदलते हुए मौसम में रहूँ

रईस फ़रोग़

जू-ए-ताज़ा किसी कोहसार-कुहन से आए

रईस फ़रोग़

जंगल से आगे निकल गया

रईस फ़रोग़

हाथ हमारे सब से ऊँचे हाथों ही से गिला भी है

रईस फ़रोग़

हमा-वक़्त जो मिरे साथ हैं ये उभरते डूबते साए से

रईस फ़रोग़

गर्म ज़मीं पर आ बैठे हैं ख़ुश्क लब-ए-महरूम लिए

रईस फ़रोग़

आँखें जिन को देख न पाएँ सपनों में बिखरा देना

रईस फ़रोग़

उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले

रईस अमरोहवी

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