साथ Poetry (page 46)

ये ज़मीं हम को मिली बहते हुए पानी के साथ

इक़बाल नवेद

अगरचे पार काग़ज़ की कभी कश्ती नहीं जाती

इक़बाल नवेद

तिरी पहली दीद के साथ ही वो फ़ुसूँ भी था

इक़बाल कौसर

रवाँ हूँ मैं

इक़बाल कौसर

कभी आइने सा भी सोचना मुझे आ गया

इक़बाल कौसर

सफ़र पे निकले हैं हम पूरे एहतिमाम के साथ

इक़बाल अज़ीम

ये निगाह-ए-शर्म झुकी झुकी ये जबीन-ए-नाज़ धुआँ धुआँ

इक़बाल अज़ीम

कुछ ऐसे ज़ख़्म भी दर-पर्दा हम ने खाए हैं

इक़बाल अज़ीम

हर-चंद गाम गाम हवादिस सफ़र में हैं

इक़बाल अज़ीम

अब इसे क्या करे कोई आँखों में रौशनी नहीं

इक़बाल अज़ीम

कोई अच्छा लगे कितना ही भरोसा न करो

इक़बाल अासिफ़

ये ख़ौफ़ कम है मुझे और चमको जब तक हो

इक़बाल अशहर कुरेशी

ख़्वाहिश हमारे ख़ून की लबरेज़ अब भी है

इक़बाल अशहर कुरेशी

फ़रार पा न सका कोई रास्ता मुझ से

इक़बाल अशहर कुरेशी

ज़रा सी बात से मंज़र बदल भी सकता था

इक़बाल अंजुम

मिले वो दर्स मुझ को ज़िंदगी से

इक़बाल आबिदी

दुनिया से कौन जाता है अपनी ख़ुशी के साथ

इन्तिज़ार ग़ाज़ीपुरी

हर एक शख़्स के विज्दान से ख़िताब करे

इंतिख़ाब सय्यद

हरा-भरा था चमन में शजर अकेला था

इंतिख़ाब अालम

ये नहीं बर्क़ इक फ़रंगी है

इंशा अल्लाह ख़ान

तफ़ज़्जुलात नहीं लुत्फ़ की निगाह नहीं

इंशा अल्लाह ख़ान

जो बात तुझ से चाही है अपना मिज़ाज आज

इंशा अल्लाह ख़ान

जिस को कुछ धन हो करे हम से हक़ीक़त की बहस

इंशा अल्लाह ख़ान

जाड़े में क्या मज़ा हो वो तो सिमट रहे हों

इंशा अल्लाह ख़ान

है मुझ को रब्त बस-कि ग़ज़ालान-ए-रम के साथ

इंशा अल्लाह ख़ान

फ़क़ीराना है दिल मुक़ीम उस की रह का

इंशा अल्लाह ख़ान

बस्ती तुझ बिन उजाड़ सी है

इंशा अल्लाह ख़ान

बात के साथ ही मौजूद है टाल एक न एक

इंशा अल्लाह ख़ान

शाख़-ए-अदम

इंजिला हमेश

अन-छूई कथा

इंजील सहीफ़ा

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