साथ Poetry (page 47)

मुझे साँसों की है थोड़ पिया

इंजील सहीफ़ा

किस को हम-सफ़र समझें जो भी साथ चलते हैं

इंद्र मोहन मेहता कैफ़

वो अजीब शख़्स था भीड़ में जो नज़र में ऐसे उतर गया

इन्दिरा वर्मा

मुझे रंग दे न सुरूर दे मिरे दिल में ख़ुद को उतार दे

इन्दिरा वर्मा

दिन में जो साथ सब के हँसता था

इंद्र सराज़ी

उधर जो शख़्स भी आया उसे जवाब हुआ

इनाम कबीर

दर-ए-उमीद मुक़फ़्फ़ल नहीं हुआ अब तक

इनआम आज़मी

सड़क

इमरान शमशाद

तुम ने ये माजरा सुना है क्या

इमरान शमशाद

मुद्दत से आदमी का यही मसअला रहा

इमरान शमशाद

मैं शजर हूँ और इक पत्ता है तू

इमरान हुसैन आज़ाद

मैं सारी उम्र अहद-ए-वफ़ा में लगा रहा

इमरान हुसैन आज़ाद

परिंदा आइने से क्या लड़ेगा

इमरान आमी

कुछ एहतिमाम न था शाम-ए-ग़म मनाने को

इमरान आमी

हम-साए में शैतान भी रहता है ख़ुदा भी

इमरान आमी

रात चराग़ की महफ़िल में शामिल एक ज़माना था

इमदाद निज़ामी

क़ैद-ए-तन से रूह है नाशाद क्या

इम्दाद इमाम असर

लोग जब तेरा नाम लेते हैं

इम्दाद इमाम असर

ग़म नहीं मुझ को जो वक़्त-ए-इम्तिहाँ मारा गया

इम्दाद इमाम असर

बहे साथ अश्क के लख़्त-ए-जिगर तक

इम्दाद इमाम असर

सर्व में रंग है कुछ कुछ तिरी ज़ेबाई का

इमदाद अली बहर

साक़ी तिरे बग़ैर है महफ़िल से दिल उचाट

इमदाद अली बहर

मर गए पर भी न हो बोझ किसी पर अपना

इमदाद अली बहर

ख़ूब-रू सब हैं मगर हूरा-शमाइल एक है

इमदाद अली बहर

दोस्तो दिल कहीं ज़िन्हार न आने पाए

इमदाद अली बहर

आज़ुर्दा हो गया वो ख़रीदार बे-सबब

इमदाद अली बहर

आहों से होंगे गुम्बद-ए-हफ़्त-आसमाँ ख़राब

इमदाद अली बहर

सियह-बख़्ती में कब कोई किसी का साथ देता है

इमाम बख़्श नासिख़

क्या रोज़-ए-बद में साथ रहे कोई हम-नशीं

इमाम बख़्श नासिख़

सब हमारे लिए ज़ंजीर लिए फिरते हैं

इमाम बख़्श नासिख़

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