साथ Poetry (page 45)
ये शहर शहर-ए-बला भी है कीना-साज़ के साथ
रईस अमरोहवी
तुम ऐ रईस! अब न अगर और मगर करो
रईस अमरोहवी
सुब्ह-ए-नौ हम तो तिरे साथ नुमायाँ होंगे
रईस अमरोहवी
'रईस' हम जो सू-ए-कूचा-ए-हबीब चले
रईस अमरोहवी
'रईस' अश्कों से दामन को भिगो लेते तो अच्छा था
रईस अमरोहवी
'रईस' अश्कों से दामन को भिगो लेते तो अच्छा था
रईस अमरोहवी
ख़ामोश ज़िंदगी जो बसर कर रहे हैं हम
रईस अमरोहवी
पहचान कम हुई न शनासाई कम हुई
राही कुरैशी
हमें नहीं आते ये कर्तब नए ज़माने वाले
इरफ़ान सत्तार
अब आ भी जाओ, बहुत दिन हुए मिले हुए भी
इरफ़ान सत्तार
वो कैसे लोग होते हैं जिन्हें हम दोस्त कहते हैं
इरफ़ान अहमद मीर
नक़ाब चेहरे से उस के कभी सरकता था
इरफ़ान अहमद
मिरे पाँव में पायल की वही झंकार ज़िंदा है
इरम ज़ेहरा
मैं सुनता रहता हूँ नग़्मे कमाल के अंदर
इक़तिदार जावेद
हज़ार बार वो बैठा हज़ार बार उठा
इक़तिदार जावेद
तमाम दिन मुझे सूरज के साथ चलना था
इक़बाल उमर
मौसमों की बातों तक गुफ़्तुगू रही अपनी
इक़बाल उमर
छतों पे आग रही बाम-ओ-दर पे धूप रही
इक़बाल उमर
सज़ा तो मिलना थी मुझ को बरहना लफ़्ज़ों की
इक़बाल साजिद
वो दोस्त था तो उसी को अदू भी होना था
इक़बाल साजिद
वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा
इक़बाल साजिद
तुम मुझे भी काँच की पोशाक पहनाने लगे
इक़बाल साजिद
सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा
इक़बाल साजिद
हर घड़ी का साथ दुख देता है जान-ए-मन मुझे
इक़बाल साजिद
बे-ख़बर दुनिया को रहने दो ख़बर करते हो क्यूँ
इक़बाल साजिद
हर मोड़ नई इक उलझन है क़दमों का सँभलना मुश्किल है
इक़बाल सफ़ी पूरी
दामन-ए-दिल है तार तार अपना
इक़बाल सफ़ी पूरी
अस्बाब यही है यही सामान हमारा
इक़बाल पयाम
फेंक दे बाहर की जानिब अपने अंदर की घुटन
इक़बाल नवेद
मिरी ख़्वाहिश है दुनिया को भी अपने साथ ले आऊँ
इक़बाल नवेद
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